‘साम दान भय भेद का कुछ तो दिखे परिणाम’
विरोधियों से अपनी बात मनवाने के लिये सत्ताधारियों द्वारा अक्सर जिन चार उपायों को अमल में लाये जाने का रामचरित मानस में तुलसीदास ने जिक्र किया है वे हैं साम, दान, भय और भेद। इसमें ‘साम’ का मतलब है समझाना, सम्मान देना व सहमति से संतुलन की राह निकालना। ‘दाम’ का अर्थ है सौदेबाजी, लेन-देन या खरीद-फरोख्त की राह अपनाना। ‘भय’ से तात्पर्य है विरोधी पक्ष को उसकी कमजोरियों व अपनी ताकत का एहसास कराके डराना। और भेद का मतलब है रहस्यात्मक रणनीति व कूटनीति का प्रयोग करते हुए विरोधी पक्ष में फूट डालकर उसे मजबूर, कमजोर व विवश कर देना। कायदे से देखा जाये तो ताजा राजनीतिक माहौल में केन्द्र सरकार भी कल से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में संभावित गतिरोध, भिड़ंत व टकराव की स्थिति को टालते हुए संसद को सुचारू ढ़ंग से चलाने के लिये इन चारों उपायों का एक साथ ही प्रयोग करती दिख रही है। दरअसल मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने पहले से ही स्पष्ट कर दिया है कि व्यापम घोटाले के आरोपों में घिरे शिवराज सिंह चैहान और ललित मोदी के मामले में फंसी सुषमा स्वराज व वसुंधरा राजे को उनके पद से हटाए जाने के बाद ही वह संसद को सुचारू ढंग से संचालित करने में सरकार का सहयोग करेगी। साथ ही उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह वर्ष 2013 में बने भूमि अधिग्रहण कानून में एक शब्द भी संशोधन करने की सरकार को हर्गिज इजाजत नहीं देगी। जाहिर है कि कांग्रेस की इस जिद को देखते हुए संसद का मानसून सत्र पूरी तरह हंगामे की भेंट चढ़ना लाजिमी ही है। लेकिन जहां तक सरकार का सवाल है तो उसकी पूरी कोशिश है कि किसी भी तरह तमाम राजनीतिक दलों के बीच जारी नीतिगत, वैचारिक व सैद्धांतिक गतिरोध को दूर करते हुए संसद को सुचारू ढंग से संचालित करके संसद के सत्र को अधिकतम परिणामदायक बनाया जाये। यही वजह है कि अपने सहयोगियों को मजबूती के साथ अपने पक्ष में खड़ा करने के लिये राजग गठबंधन के घटक दलों को पहली बार औपचारिक तौर पर एकसाथ रात्रिभोज के बहाने बातचीत करने के लिये प्रधानमंत्री ने अपने निवास पर आमंत्रित करने की पहल की। साथ ही विरोधियों को मनाने के लिये ‘साम’ नीति के तहत समझाने की राह अख्तियार करते हुए भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसले पर बातचीत करने के लिये पहले भी आमंत्रित किया गया जिसमें शिरकत करने से कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने तो साफ तौर पर इनकार कर दिया अलबत्ता भाजपा व उसके साथी दलों के मुख्यमंत्रियों के अलावा बिहार व दिल्ली के सूबेदारों सहित कुछ सोलह प्रदेशों के साथ बातचीत भी हुई। साथ ही संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने और लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर तमाम विवादास्पद मसलों पर सभी दलों को समझाने व मनाने की पहल भी की। इस ‘साम’ नीति के नतीजे में कथित तौर पर सपा व बसपा सहित जनता परिवार के घटक दलों सहित अधिकांश राजनीतिक दलों ने तमाम विवादास्पद व उलझाऊ मसलों पर बातचीत के माध्यम से सहमति की राह निकालने व संसद को सुचारू ढंग से संचालित करने पर अपनी सहमति दे दी है। लेकिन कांग्रेस बदस्तूर संसद में गतिरोध का माहौल बनाने की जिद पर अड़ी दिख रही है। हालांकि सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को झुकाने व उसे पीछे हटने पर मजबूर करने के लिये ‘दान’ नीति के तहत यह प्रस्ताव भी दे दिया गया है कि अगर वह बाकी मसलों पर अपनी जिद छोड़ दे तो मौजूदा सत्र में भूमि विधेयक को पारित कराने से परहेज बरत लिया जाएगा ताकि बाकी संसदीय कामकाज सुचारू ढंग से संचालित हो सके और जीएसटी व नाबालिग श्रमिकों से जुड़े महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने की राह निकल सके। साथ ही कांग्रेस के खिलाफ ‘भय’ की नीति का प्रयोग करते हुए भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है अगर उसने गतिरोध व टकराव का सिलसिला बदस्तूर जारी रखा तो ऐसे में उसके शीर्ष संचालक परिवार के दामाद राबर्ट वाड्रा द्वारा राजस्थान व हरियाणा में कथित तौर पर अंजाम दिये जमीन घोटाले, प्रियंका गांधी द्वारा शिमला में की गयी जमीन की कथित हेराफेरी व सोनिया गांधी की सगी बहन द्वारा ललित मोदी से 500 करोड़ की रिश्वत मांगे जाने के मामले को देशभर में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने और विदेशी कंपनी से घूस लेने के मामले में अमेरिकी अदालत में साबित हो चुकी गोवा की पूर्ववर्ती सरकार के मंत्रियों संलिप्तता के मसले की सीबीआई से जांच कराने से भी परहेज नहीं बरता जाएगा। इसके अलावा ‘भेद’ की नीति के तहत कांग्रेस को संसद से लेकर सड़क तक पूरी तरह अलग-थलग करने व अन्य विपक्षी व तटस्थ दलों के साथ बातचीत के माध्यम से तमाम विवादास्पद मसलों पर आम सहमति की राह निकालने की कोशिशें भी जोरों पर जारी है। यानि समग्रता में देखा जाये तो सरकार ने विपक्ष पर ‘साम दान भय भेद’ के सभी हथियारों का एक साथ ही प्रयोग कर दिया है लेकिन मसला यह है कि इन तमाम हथकंडों को अमल में लाये जाने के बावजूद जिस तरह से कांग्रेस के आक्रोश व आक्रामकता में जरा भी कमी नहीं दिख रही है उसके मद्देनजर अगर सरकार ने समय रहते किसी अन्य उपाय से इस मसले को हल करने की पहल नहीं की तो कल से आरंभ हो रहे संसद के मानसून सत्र में कुछ सकारात्मक परिणाम हासिल करने की उम्मीदें शायद ही परवान चढ़ सकें। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’
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