‘सुस्त कदम रास्ते और तेज कदम राहें’
भाजपा के शिखर पुरूष कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की पंक्तियां हैं कि- ‘दांव पर सब कुछ लगा है रूक नहीं सकते, टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।’ वाकई वाजपेयी की भाजपा, नरेन्द्र मोदी के मौजूदा दौर में ऐसे मोड़ पर आ गई है जहां से आगे बढ़ने का रास्ता सुस्त और वापसी की राहें बेहद तेज नजर आ रही हैं। बेशक पूर्वोत्तर का चुनाव परिणाम आने के बाद तक पार्टी को अजेय माना जाने लगा था लेकिन उसके कुछ ही दिनों सामने आए फूलपुर और गोरखपुर के चुनाव परिणामों ने पूरी तस्वीर बदल कर रख दी। भाजपा की इस हार ने तमाम गैर-भाजपाई दलों को यह भरोसा दिला कि जब गोरखपुर में भाजपा को हराया जा सकता है तो ऐसी कोई भी सीट नहीं है जहां उसे शिकस्त ना दी जा सके। सिर्फ जरूरत है गैर-भाजपाई वोटों का बिखराव रोकने की और ऐसा माहौल बनाने की जिससे मतदाताओं को आश्वस्त किया जा सके कि अगर उन्होंने भाजपा के खिलाफ वोट दिया तो वह बेकार नहीं जाएगा। इसी उत्साह का नतीजा है कि कांग्रेस की ओर से भी गैर-भाजपाई दलों की गोलबंदी का प्रयास जारी है और ममता बनर्जी व शरद पवार सरीखे नेतागण भी इस काम में जुट गए हैं। कई स्तरों पर यह प्रयास आरंभ हो गया है कि एक मजबूत मोर्चा बनाकर प्रादेशिक स्तर पर घेराबंदी करके भाजपा को धूल चटाई जा सके। दूसरी ओर भाजपा के भीतर भी अंदरूनी तौर पर कुछ ऐसे खेमे सक्रिय होते हुए दिख रहे हैं जिनमें गोरखपुर के चुनावी नतीजों से आशाओं व उम्मीदों का नए सिरे से संचार हुआ है और उनका मानना है कि अगर पार्टी को आगामी चुनाव में बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने में कामयाबी नहीं मिल सकी तो प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम की लाॅटरी लग सकती है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में भी मोदी को प्रधानमंत्री पद उम्मीदवार घोषित कराने के पीछे भी इन खेमों का आकलन यही था कि ऐसा करने से पार्टी को अधिकतम दो सौ सीटें मिल जाएंगी और बाद में मोदी के नाम पर अन्य दलों से समर्थन नहीं मिलने पर उनका प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो जाएगा। लेकिन मोदी से मेहनत करा कर सत्ता की मलाई पर कब्जा जमाने की सोच रखनेवालों की उम्मीदों पर मतदाताओं ने पानी फेर दिया और भाजपा के खाते में आवश्यकता से दस सीटें अधिक ही आ गईं। नतीजन पिछले चार साल से मोदी का निष्कंटक राज जारी है और उम्मीदों की आस में मोदी का नाम आगे करनेवालों के पास बेहतर परिस्थिति का इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि इनकी उम्मीदें एक बार फिर जग रही हैं और गोरखपुर के चुनावी नतीजों के बाद इन खेमों के नेताओं को यह यकीन होने लगा है कि उनका जो सपना 2014 में पूरा नहीं हो पाया वह इस बार अवश्य पूरा हो जाएगा। यही वजह है कि उनकी नजरें इस समीकरण पर टिक गई हैं कि अगर बाहर से समर्थन जुटाने की जरूरत पड़े तो ‘प्रदेश अभिमान’ के नाम पर अपने गृह राज्य की सभी पार्टियों के सांसदों का समर्थन हासिल किया जा सके। इसके अलावा अन्य दलों के साथ भी अपना अंदरूनी तालमेल मजबूत करने की कोशिशें जारी हैं ताकि मौके पर बहुमत साबित करने में कोई दिक्कत ना आए। यानि पार्टी के असंतुष्ट तबके में उम्मीदों के आॅक्सीजन का संचार आरंभ होता दिखने लगा है। इसके अलावा बीते दिनों हुए राज्यसभा के टिकटों के बंटवारे को लेकर भी एक बड़े तबके में नाराजगी का माहौल है। पहले आडवाणी को ठेंगा दिखाना और अब राज्यसभा भेजने के मामले में सशक्त दावेदारों को किनारे किया जाना भाजपा के मौजूदा निजाम के प्रति रोष, असंतोष व असहमति का सबब बन रहा है। रही सही कसर निर्णय प्रक्रिया में कथित मनमानी ने पूरी कर दी है। हालांकि भले ही अभी शीर्ष नेतृत्व के भय से असंतोष के ज्वालामुखी का लावा फूटकर ना बह रहा हो लेकिन आगामी दिनों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में मिलने वाली एक भी हार बड़े विस्फोट के साथ इस लावे के बहने का रास्ता खोल सकती है। अगर पार्टी के मौजूदा निजाम यानि मोदी और अमित शाह की जोड़ी की बात करें तो उनके लिए चुनौती है कि एक तरफ अगले आम चुनाव की तारीख की उल्टी गिनती शुरू होने वाली है और दूसरी तरफ कर्नाटक की चुनावी परीक्षा का सामना करने के अलावा साल के आखिर में राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ जैसे अपने दुर्ग को भी ढ़हने से बचाना है। हालांकि इस जोड़ी ने तमाम प्रतिकूलताओं जूझते हुए केन्द्र के साथ ही 21 राज्यों में प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर सत्ता हासिल करके पार्टी को देश के 68 फीसदी भू-भाग पर राजनीतिक कब्जा दिलाया है। सदस्यों की तादाद के लिहाज से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा का नाम दर्ज कराया है। यहां तक कि बकौल अमित शाह आज भाजपा के पास जो अपना मुख्यालय है वह भी विश्व के किसी भी राजनीतिक दल के मुख्यालय के मुकाबले कहीं अधिक भव्य, दिव्य व विस्तृत है। यानि हर लिहाज से इन्होंने भाजपा कोे ऐसी ऊंचाई पर ला दिया है जो किसी सपने के सच होने जैसा है। लेकिन यह भी सच है कि मौजूदा चुनौती से निपटने पर ही सफलता की गाथा का अगला अध्याय आरंभ होगा वर्ना बोरिया-बिस्तर गोल करने का मौका तलाशने वालों की चांदी होती देर नहीं लगेगी। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’ @नवकांत ठाकुर #Navkant_Thakur