‘सब्र से चल रहा शह मात का खेल’
चुनाव आयोग द्वारा अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की अधिसूचना जारी कर दिए जाने के साथ ही औपचारिक तौर पर नामांकन प्रक्रिया का आगाज हो गया है। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 28 जून है। एक जुलाई तक नाम वापस वापस लिए जा सकेंगे। 17 जुलाई को वोटिंग होगी और 20 जुलाई को मतगणना होगी। इस पूरी चुनावी प्रक्रिया में देश के कुल 4896 निर्वाचित प्रतिनिधि अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। यानि इतना तो तय है कि 20 जुलाई को नए राष्ट्रपति का नाम सामने आ जाएगा। लेकिन लाख टके का सवाल अब भी बना हुआ है कि आखिर वह कौन होगा जिसे देश का प्रथम नागरिक बनने का सौभाग्य हासिल होगा। अभी तक ना तो सत्ता पक्ष ने अपने उम्मीदवार का चेहरा आगे किया है और ना ही विपक्ष ने। दोनों ओर से चूहे बिल्ली का खेल ही चल रहा है। दोनों की कोशिश है कि आगे बढ़ कर किसी का नाम सामने ना किया जाए बल्कि विरोधी पक्ष की ओर से पेश किए जाने वाले उम्मीदवार का नाम सामने आने की प्रतीक्षा की जाए। शह-मात के इस खेल में सत्ता पक्ष ने भी विभिन्न दलों से बातचीत करके बहुमत के आंकड़े का जुगाड़ करने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है और विपक्ष ने भी सर्वमान्य चेहरे की तलाश के लिए दस सदस्यीय कमेटी बना दी है। दोनों ओर से कमेटी-कमेटी का खेल शुरू हो गया है। वास्तव में देखा जाए तो राष्ट्रपति के पद पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को जीत दिलाने लायक पर्याप्त वोट ना तो सत्ता पक्ष के पास उपलब्ध है और ना ही विपक्ष के पास। बल्कि भाजपा व कांग्रेस से समानांतर दूरी बनाकर चलनेवाले दलों की तीसरी ताकत के पास ही वह निर्णायक चाबी है जो किसी भी पक्ष के उम्मीदवार के लिए राष्ट्रपति भवन का ताला खोल सकता है। यही वजह है कि सरकार की कोशिश विपक्षी खेमे में सेंध लगाने की है जबकि कांग्रेसनीत विपक्ष का प्रयास है कि गैर-भाजपाई दलों को अपने साथ जोड़कर बहुमत के आंकड़े का जुगाड़ किया जाए। साथ ही विरोधी खेमे में सेंध लगाने को लेकर दोनों ही पक्ष पूरी तरह आशान्वित भी हैं। इतिहास गवाह है कि पिछले दो बार के राष्ट्रपति चुनाव में भाजपानीत राजग की एकता पहले ही तार-तार हो चुकी है और दोनों ही बार शिवसेना ने गठबंधन धर्म को दरकिनार कर कांग्रेस की ओर से पेश किए गए उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने में कोई संकोच नहीं किया। वह भी तब जबकि भाजपा के साथ उसके रिश्ते इतने खराब नहीं थे कि उसे विधानसभा व स्थानीय निकाय का चुनाव अपने दम पर लड़ने के लिए मजबूर होना पड़े। लिहाजा इस दफा वह भाजपा के उम्मीदवार को समर्थन देने के लिए आगे आएगी या नहीं इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। यानि भाजपा के समक्ष इस चुनाव को लेकर दोहरी चुनौती है। अव्वल तो उसे राजग की एकता को बरकरार रखना होगा और दूसरे विरोधी खेमे में सेंध लगाकर बहुमत के आंकड़े का जुगाड़ करना होगा। दूसरी ओर कांग्रेसनीत विपक्ष की राह भी कतई आसान नहीं दिख रही है। कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या तो धुर भाजपा विरोधी दलों को किसी एक नाम पर सहमत करने की है जिसके आसार दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहे। दूसरी चुनौती उस चेहरे के लिए बहुमत का जुगाड़ करने की भी है। इसके लिए तीसरे पाले में खड़े उन दलों को इसे अपने साथ जोड़ना होगा जो ना तो राजग का हिस्सा हैं और ना ही संप्रग का। इसमें कांग्रेस को किस हद तक सफलता मिल पाएगी इसके बारे में कुछ भी दावा नहीं किया जा सकता है क्योंकि तमाम गैर-भाजपाई दलों को एक मंच पर लाना काफी हद तक तराजू में मेंढ़क तौलने सरीखा नामुमकिन की हद तक मुश्किल काम है। राष्ट्रपति पद के लिए जो नाम सपा को पसंद आए वही बसपा को भी पसंद हो और वामपंथी व तृणमूल भी उस पर सहमति दे दें इसकी उम्मीद काफी कम है। फिर आम आदमी पार्टी, जदयू व राजद से लेकर राकांपा, टीआरएस व द्रमुक सरीखे धुर भाजपा विरोधी दलों को भी उसी नाम को समर्थन देने के लिए सहमत करना होगा और इस बात की उम्मीद भी पालनी होगी कि उस नाम पर राजग में भगदड़ मच जाए ताकि सत्ता पक्ष में सेंध लगाने की कोशिशें कामयाब हो सकें। जाहिर है कि ऐसा कोई सर्वस्वीकार्य नाम तलाशना काफी हद तक असंभव ही है। इसी प्रकार भाजपा के समक्ष भी यही चुनौती है कि किसी ऐसे चेहरे को उम्मीदवार बनाया जाए जिसे उन सभी 33 दलों की स्वीकार्यता हासिल हो जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ही 2019 का अगला लोकसभा चुनाव लड़ने पर अपनी सहमति दी हुई है। लेकिन ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं दिख रहा क्योंकि एक तरफ शत्रुघ्न सिन्हा ने लालकृष्ण आडवाणी का नाम उछाल दिया है तो दूसरी तरफ राजग का काफी बड़ा खेमा गैर-संघी गुण-सूत्र वाले सर्वमान्य उम्मीदवार की मांग कर रहा है और शिवसेना ने तो संघ सुप्रीमो मोहन भागवत से लेकर एमएस स्वामीनाथन तक का नाम उछालकर अपनी खुराफाती नीयत का संकेत अभी से दे दिया है। यानि चेहरे का चकल्लस इधर भी है और उधर भी। सेंधमारी की ख्वाहिश इधर भी है और उधर भी। लिहाजा बेहतर यही है कि एक दूसरे के सब्र का जमकर इम्तिहान लिया जाए क्योंकि एक की गलती दूसरे की जीत निश्चित ही सुनिश्चित कर देगी। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’ @ नवकांत ठाकुर #navkantthakur