शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

‘क्या हासिल पीछे हटने से, आगे बढ़ो प्रहार करो’
नवकांत ठाकुर
ईद के सिवैयों की मिठास के साथ आरंभ होने जा रहे संसद के मानसून सत्र का जायका बेहद तीखा रहने का एलान तो विपक्ष ने पहले ही कर दिया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने बेलाग लहजे में काफी पहले ही बता दिया था कि अगर सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा भगोड़ा घोषित किये जा चुके ललित मोदी की मदद करने के आरोपों में घिरी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को उनके पद से नहीं हटाया तो वह संसद के सत्र को हर्गिज सुचारू ढंग से संचालित नहीं होने देगी। साथ ही व्यापम विवाद को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को भी पद से हटाये जाने की जिद पर अड़े विपक्ष द्वारा इस मामले को लेकर भी संसद में जोरदार बवाल काटे जाने की पूरी संभावना है। इसके अलावा सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के संशोधित प्रारूप को सदन से पारित कराने की जो जिद ठानी हुई है उससे भी विपक्ष को संसद में बवाल काटने का भरपूर मौका मुहैया होता दिख रहा है। साथ ही खाद्य पदार्थों की आसमान छू रही महंगाई से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा, मौसमी बाढ़-सुखाड़ व किसानों की समस्या सरीखे विभिन्न सदाबहार मामलों के तीर तो सरकार पर हमला करने के लिये विपक्ष की तूणीर में हमेशा ही पड़े रहते हैं। यानि अगर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के मौजूदा तेवरों व तैयारियों को देखा जाये तो इस बार वह संसद को सुचारू ढंग से संचालित करने में सरकार का सहयोग करने के लिये कतई तैयार नहीं दिख रही है। हालांकि इसके लिये बाकी विपक्षी दलों को भी अपने साथ जोड़ने के प्रति कांग्रेस की ओर से अभी तक कोई औपचारिक प्रयास नहीं किया गया है लेकिन पार्टी का मानना है कि मौजूदा हालातों में बाकी विपक्षी दलों को अपने साथ जोउ़ने के लिये उसे विशेष परिश्रम करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि तमाम विरोधी दल खुद ही इन मामलों को लेकर उसके सुर में अपना सुर मिलाने के लिये आगे आ जाएंगे। अब कांग्रेस की यह अपेक्षाएं किस हद तक पूरी हो पाएंगी यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा लेकिन उसके इन हमलावर तेवरों को देखते हुए सरकार के संचालकों द्वारा जो  जवाबी रणनीति अपनाए जाने का संकेत मिल रहा है उसके तहत विपक्ष की ओर से होनेवाले हमलों का जोरदार प्रतिवाद करने की तैयारियां अभी से तेज कर दी गयी हैं। सूत्रों की मानें तो विपक्ष की घेरेबंदी से बचने के लिये किलाबंदी करके अपना बचाव करने के विकल्प को अमल में लाने के बजाय इस बार सरकारी खेमा भी ईंट का जवाब पत्थर से देने की पूरी तैयारी कर रहा है। इसी सिलसिले में एक ओर तो कांग्रेस को अलग थलग करके विपक्षी घेरेबंदी को कमजोर करने की रणनीति अपनायी जा रही है और दूसरी ओर कांग्रेस के हथियारों की धार को भोथरा करके उसकी ताकत कामजोर करने का भी प्रयास किया जा रहा है। साथ ही गैरकांग्रेसी विपक्षियों की कमजोरियों को हथियार बनाकर उनका अंदरूनी सहयोग व समर्थन हासिल करने की योजना भी बनायी जा रही है। इसी सिलसिले में जनता परिवार को शिकंजे में लेने के लिये सपा की कमजोरियों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने के मकसद से भाजपा ने राष्ट्रीय नेताओं की एक टोली को उत्तर प्रदेश भेजने की योजना बनायी है जो शाहजहांपुर में हुए पत्रकार जगेन्द्र की हत्या के मामले और बाराबंकी में थाने के भीतर महिला को जलाकर मार दिये जाने के मामले की पड़ताल करके संसद सत्र शुरू होने से पहले ही अपनी विस्तृत रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष को सौंप देगी। इसके अलावा व्यापम के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई जांच की अर्जी पर सकारात्मक फैसला सुनाए जाने का स्वागत करके भाजपा ने इस मसले का कांग्रेसी हथियार अभी से कुंद कर दिया है। रहा सवाल ललित मोदी से जुड़े मसलों का तो इस मामले में भी पार्टी ने हमलावर तेवर अख्तियार करते हुए तय किया है कि अगर कांग्रेस ने ललित के भाजपा कनेक्शन को तूल देकर संसद में हंगामा मचाने की पहल की तो इसके जवाब में ललित द्वारा किये गये कांग्रेस के शीर्ष परिवार से जुड़े खुलासों को लेकर उसे सवालों के कठघरे में खड़ा करने से कतई परहेज नहीं बरता जाएगा। इसके अलावा भूमि अधिग्रहण विधेयक के मामले में राज्यसभा की प्रवर समिति द्वारा प्रस्तुत की गयी सिफारिशों को स्वीकार कर लिये जाने के बाद भी अगर कांग्रेस ने इसे पारित करने में सहयोग नहीं किया तो पहली कोशिश तो सभी गैरकांग्रेसी दलों को अपने साथ जोड़कर इसे सदन से पारित कराने की ही होगी जिसके लिये किसी भी हथकंडे को अमल में लाने से कतई संकोच नहीं किया जाएगा। लेकिन अगर फिर भी बात नहीं बनी और इसे राज्यसभा का समर्थन नहीं मिल सका तो इस मामले में भी अब चुप बैठने के बजाय संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर विधेयक को पारित कराने के विकल्प पर यथाशीघ्र अमल कर लिया जाएगा। यानि समग्रता में देखा जाये तो इस बार का मानसून सत्र बेहद जोरदार टकराव का गवाह बनने जा रहा है जिसमें कोई भी पक्ष जरा भी पीछे हटने के लिये तैयार नहीं दिख रहा है। बहरहाल, हमले के जवाब में आक्रमण की रणनीति अपनाये जाने को तो कतई गलत नहीं कहा जा सकता है लेकिन विपक्ष को विश्वास में लेकर संसद को सुचारू ढ़ंग से संचालित करने परंपरा के बदस्तूर क्षरण को कैसे सही कहा जा सकता है। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’  

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