‘हर मोड़ पर नयी राह पकड़ना नहीं अच्छा’
मशहूर शायर राहत इन्दौरी साहब द्वारा उठाये गये इस सवाल का सटीक जवाब आज तक शायद ही किसी को मिल पाया हो कि ‘लोग हर मोड़ पर रूक-रूक के संभलते क्यों हैं, इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं।’ यह सवाल इसलिये प्रासंगिक है क्योंकि आम तौर पर लोग स्वामी विवेकानंद की उस सीख का अनुसरण करना गवारा नहीं करते जिसमें उन्होंने एक बार लक्ष्य तय कर लेने के बाद तब तक चैन से नहीं बैठने की बात कही थी जब तक वह पूरी तरह हासिल ना हो जाये। लेकिन सवाल सिर्फ इतना ही नहीं है कि लक्ष्य तय कर लेने के बाद उसे हासिल करने की दिशा में सरपट भागने के बजाय लोग हर मोड़ पर अटकते, ठिठकते, सहमते व संभलते हुए क्यों दिखाई पड़ते हैं। अलबत्ता वे कम से कम तयशुदा लक्ष्य की ओर डरते-डरते भी सधे कदमों से संभलते हुए आगे तो बढ़ते रहते हैं। यहां सवाल तो उनका है जो हर नये मोड़ पर नयी राह पकड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। उस पर तुर्रा यह कि लक्ष्य तो तय ही है, फिर इस बात से क्या फर्क पड़ता कि राह कौन सी चुनी जा रही है। अब ऐसी दलीलों को सरासर थेथरोलाॅजी ना कहें तो और क्या कहें। वैसे भी हर राह से एक ही मंजिल पर पहुंचने की बात आध्यात्मिक लिहाज से तो ठीक है मगर दुनियावी मामलों में इसे कैसे सही माना जा सकता है। बल्कि यह तो भटकाव की स्थिति है जो इन दिनों भारत की विदेश नीति में स्पष्ट दिख रही है। खास तौर से चीन व पाकिस्तान सरीखे पड़ोसी देशों के साथ अमल में लायी जा रही नीतियों पर गौर करें तो इसमें अटकाव, भटकाव व हर मोड़ पर अप्रत्याशित बदलाव की स्थिति साफ तौर पर महसूस की जा सकती है। मिसाल के तौर पर पठानकोट में हुए आतंकी हमले का मामला सामने आने के बाद पाकिस्तान से विदेश सचिव स्तर की वार्ता स्थगित करने के पीछे तर्क दिया गया कि बातचीत तभी संभव है जब सीमापार से इस मामले में कुछ ठोस कार्रवाई होती हुई दिखे। इस घुड़की का असर हुआ कि पाकिस्तान ने ना सिर्फ मामले की जांच शुरू कराई बल्कि कई अन्य लोगों के साथ उस मसूद अजहर को भी उसने नजरबंद किया जो पठानकोट में हुए आतंकी हमले का असली सूत्रधार है। लेकिन पाकिस्तान की इन पहलकदमियों के बावजूद इधर से संतोष नहीं जताया गया और वार्ता प्रक्रिया स्थगित ही रही। लेकिन अब जबकि पठानकोट मामले में पाकिस्तान पूरी तरह अपने वायदों से मुकर गया है और अनौपचारिक तौर पर इस वाकये को हमारी ही खुराफात साबित करने पर आमादा दिख रहा है इसके बावजूद अचानक विदेश सचिव स्तर की वार्ता कराके नई दिल्ली क्या संदेश देना चाह रही है यह समझ से परे ही है। अगर वार्ता प्रक्रिया को जारी रखना था तो पठानकोट मामले की आग में पूर्व निर्धारित बातचीत को होम ही नहीं करते। और अगर बातचीत बंद करके पाकिस्तान को कुछ ठोस कदम उठाने के लिये मजबूर करने की नीति अपनायी गयी तो कम से कम तब तक तो इस नीति पर टिके रहते जब तक वह हमारी एनआईए को पठानकोट मामले की जांच के लिये अपनी सरहद में दाखिल होने की इजाजत नहीं दे देता, उसकी जेआईटी की रिपोर्ट सकारात्मक नहीं दिखती, और अपनी अदालत में वह इस मामले को मजबूती से पेश करता हुआ दिखाई नहीं पड़ता। अलबत्ता हार्ट आॅफ एशिया समिट में हिस्सा लेने के लिये आए पाकिस्तानी विदेश सचिव अहमद चैधरी के साथ अचानक ही अप्रत्याशित तरीके से हुई हमारे विदेश सचिव एस जयशंकर की दो घंटे लंबी चली वार्ता का नतीजा यह है कि पाकिस्तान कश्मीर का राग आलाप रहा है और हम आतंकवाद का रोना रो रहे हैं। दोनों की अपनी ढ़फली है और अपना अलग राग है जिसमें कहीं कोई तालमेल ही नहीं है। अब हालत यह है कि हमारी सरकार यह बताने की हालत में ही नहीं है कि उसने वार्ता प्रक्रिया बहाल करने के लिये पाकिस्तान के समक्ष जो शर्तें रखी थीं उसका क्या हुआ। यानि हुआ यूं कि वार्ता करनी है सो कर ली। महज दिखावे की बेमानी खानापूर्ति। जिससे फायदा तो कुछ नहीं हुआ अलबत्ता नुकसान यह हुआ कि वार्ता प्रक्रिया स्थगित करके पाकिस्तान पर जो दबाव बनाया गया था वह पूरी तरह मटियामेट हो गया। नीतियों में भटकाव की ऐसी ही स्थिति चीन के मामले में भी देखी जा रही है जिसे उसकी ही भाषा में जवाब देने के लिये पहले तो उसके वांक्षित अपराधी व उइगुर नेता डोलकुन इशा को भारत आने का वीजा प्रदान किये जाने की खबर को खूब प्रचारित प्रकाशित किया गया और बाद में जब कांग्रेस ने भी इशा को वीजा दिये जाने का समर्थन करने की पहल की तो अचानक ही उसका वीजा रद्द कर दिया गया। यानि हर नये मोड़ पर नयी राह अपनाने की जो नीति पाकिस्तान के साथ अपनायी गयी उसी का अनुसरण चीन के मामले में भी किया गया। अब भटकाव के इस राह की मंजिल कैसी होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। खैर, इन मामलों के मद्देनजर तो हरिवंश राय बच्चन की यही पंक्तियां सही राह बताती हुई महसूस हो रही हैं कि ‘राह पकड़ तू एक चला चल पा जाएगा मधुशाला।’ वर्ना इस तरह अंधेरे में अटकते-भटकते हुए गलती से भी कोई गलती हो गयी तो बचने की कोई राह नहीं बचेगी। ‘जैसी नजर, वैसा नजरिया।’ नवकांत ठाकुर Navkant Thakur
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