शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

‘नुकसान की तस्वीर में फायदे का रंग’

राजनीति में कोई भी नुकसान ऐसा नहीं होता जिसमें कोई ना कोई फायदा ना छिपा हो और कोई फायदा ऐसा नहीं होता जिसमें किसी नुकसान का बीज ना छिपा हो। बल्कि नफा-नुकसान के बीच की डगर से ही सियासत का सफर तय होता है। लिहाजा कोशिश यही की जाती है कि कोई कदम उठाने से पूर्व इस बात का अच्छी तरह आकलन कर लिया जाए कि उससे न्यूनतम नुकसान और अधिकतम फायदा हासिल हो। लेकिन सामाजिक न्याय के झंडे को मजबूती से लहराने और कमंडल को किनारे रखकर मंडल की माला पहनने की कोशिश में भाजपा को इन दिनों जिस कदर अपने परंपरागत मतदाताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है उसकी पार्टी ने शायद ही कभी कल्पना भी की हो। हालांकि संसद के हालिया गुजरे सत्र के आखिरी दिनों में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देना और अनुसूचित जाति व जनजाति उत्पीड़न निवारक अधिनियम को दोबारा से मजबूत किया जाना भाजपा की नजर में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में ऐसा ऐतिहासिक कदम था कि उसे ‘अगस्त क्रांति’ का नाम देने से भी परहेज नहीं बरता गया। पूरे देश में अगस्त क्रांति यात्रा निकाली गई और जमीनी स्तर तक लोगों को यह बताने का प्रयास किया गया कि पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों के हितों की रक्षा करने के लिये मोदी सरकार किस कदर अडिग व कृतसंकल्पित है। लेकिन ओबीसी और एससी-एसटी के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के इन प्रयासों से समाज का वह सवर्ण तबका बुरी तरह बिदक गया जिसका मानना है कि उसके ही समर्थन से दो सांसदों वाली भाजपा को पूर्ण बहुमत तक की यात्रा करने में सफलता मिली है। नतीजन सवर्णों का आक्रोश सड़क पर दिख रहा है। कहीं भाजपा के मुख्यमंत्री पर जूता-पत्थर फेंका जा रहा है तो कहीं मंत्रियों-सांसदों को काले झंडे दिखाए जा रहे हैं। पूरे देश में सवर्णों का आक्रोश उबाल मार रहा है। हालांकि भाजपा को इस बात का अंदेशा पहले से था कि दलितों व पिछड़ों का तुष्टिकरण करने की कोशिश में उसे सवर्णों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। लेकिन उसकी विवशता थी कि दलितों को गैर-भाजपाई ध्रुवीकरण का हिस्सा बनने से रोकने के लिये एससी-एसटी एक्ट के उन प्रावधानों को दोबारा पूर्ववत बहाल करे जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने कानून का दुरूपयोग रोकने की नीयत से शिथिल कर दिया था। कानून को शिथिल किये जाने के बाद से जिस कदर देश भर में दलितों पर हमलों के मामले सामने आ रहे थे और पूरा दलित समाज मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलित, आक्रोशित व एकजुट होता दिख रहा था उससे भाजपा के हाथ-पांव फूले हुए थे कि अगर एकजुट दलितों ने गैर-भाजपावाद का झंडा थाम लिया और राष्ट्रीय स्तर पर मीम-भीम एका की परिकल्पना साकार हो गयी तो उस आंधी में अपना वजूद बरकरार रख पाना नामुमकिन की हद तक मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी पूरा विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्तापक्ष के कई साथी व सहयोगी भी आरक्षण के मसले को लेकर भाजपा व मोदी-सरकार की नीति व नीयत पर उंगली उठाने में कसर नहीं छोड़ रहे थे। मोदी सरकार की छवि को दलित विरोधी के तौर पर दर्शाने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा था। यही वजह रही कि मोदी सरकार ने दलितों की आवाज को संसद की स्वीकृति दिला दी और एससी-एसटी एक्ट को पुराने स्वरूप में बरकरार कर दिया। लेकिन इससे भाजपा को दलितों का कितना समर्थन मिल पाएगा इसके बारे में तो पक्के तौर पर तो कोई कुछ नहीं कह सकता अलबत्ता अब सवर्णों ने अवश्य पार्टी की नींद उड़ा दी है। यही वजह है कि अब पूरा भगवा खेमा इस मामले को लेकर दो-फाड़ दिख रहा है। पार्टी का एक बड़ा तबका इस मसले को इसी सप्ताहांत राजधानी स्थित अम्बेडकर भवन में आयोजित होने जा रही दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पूरी मजबूती से उठाने का संकेत दे रहा है। यहां तक कि वरिष्ठतम भाजपाई नेताओं में शुमार होनेवाले कलराज मिश्र ने तो सार्वजनिक तौर पर जता-बता दिया है कि सवर्णों के खिलाफ होने वाले दलित कानून के दुरूपयोग के मामलों से निपटने के लिये ठोस इंतजाम किये जाने की जरूरत है। लेकिन इस सबके बीच भाजपा के शीर्ष संचालकों की टोली ने मंगलवार की शाम को जब इस पूरे मसले को लेकर अलग से चिंतन-विवेचन किया तो उसमें यही तय हुआ कि एससी-एसटी के मामले को लेकर जारी विवाद को अलग-अलग स्तर पर सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ा जाये। मसलन दलितों के हितों को सर्वोपरि रखने का जो प्रयास किया गया है उसको लेकर दलित समाज के बीच जागरूकता बढ़ाने के अभियान को बदस्तूर जारी रखा जाये। दूसरी ओर सवर्ण समाज को यह बताया जाये कि आखिर किन मजबूरियों के कारण सरकार को इस दिशा में पहलकदमी करनी पड़ी है और क्यों ऐसा करना सभी राजनीतिक दलों के लिये भी आवश्यक हो गया था। साथ ही सवर्ण समाज को यह बताने का भी प्रयास किया जाएगा कि मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट में अपनी ओर से कुछ भी नया नहीं जोड़ा है बल्कि पुराने कानून को ही यथावत बहाल कर दिया है। खैर, इस सबसे सवर्ण समाज का आक्रोश कितना शांत होगा और सवर्णों की नाराजगी किस हद तक चुनावी नतीजों में फलित होगी यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा लेकिन इस पूरे विवाद और खास तौर से सवर्णों के मुखर आक्रोश ने भाजपा को दलित विरोधी बताने के प्रयासों को तो पूरी तरह पलीता लगा ही दिया है। ‘जैसी नजर, वैसा नजरिया।’ @नवकांत ठाकुर #Navkant_Thakur

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