शुक्रवार, 27 मई 2016

सियासत में सकारात्मकता की जरूरत

‘धैर्य व धर्म के प्रदर्शन की जरूरत’

किसी भी इंसान की प्रकृति व प्रवृति की सही परख तभी संभव है जब वह बुरी तरह परेशानियों में घिरा हो। परेशानी व समस्याओं में उलझा इंसान अधिक देर तक बनावटी व्यवहार नहीं कर सकता। तभी तो कहा भी गया है कि ‘आपतकाल परखिये चारी, धीरज धर्म मित्र और नारी।’ यानि धैर्य व धर्म की वास्तविक कसौटी परेशानियां व विपत्तियां ही होती हैं और जीवन में सफलता के लिये तो शिरडी के सांई ने भी श्रद्धा व सबुरी का ही संदेश दिया है। परेशानी छोटी हो बड़ी अथवा तात्कालिक हो या दीर्घकालिक, वह इंसान की परख करा ही देती है। मसलन छोटी सी ठेस लगने पर अचानक जुबान से निकलनेवाले अल्फाज से ही यह जाना जा सकता है कि इंसान किस प्रवृति व प्रकृति का है। क्योंकि ठेस लगते ही कराह के साथ किसी की जुबान से मोटी सी गाली निकलती है जबकि किसी की जुबान पर माता-पिता या परमात्मा का नाम आ जाता है। ऐसे में छोटी सी ठेस लगने पर मोटी सी गाली उगलनेवाले इंसान को नियति किस ओर ले जाएगी यह शायद ही किसी को अलग से बताने की जरूरत हो। लिहाजा अगर इस बात का आकलन करना हो कि मौजूदा वक्त में बुरी तरह उलझन, परेशानी व विपत्ति के मकड़जाल में फंसा हुआ इंसान आगामी दिनों में किस हद तक सफलता हासिल कर पाएगा तो निगाह इस बात पर दौड़ानी चाहिये कि उसकी मौजूदा सोच सकारात्मक है या नहीं। यही बात राजनीति में भी लागू होती है। यहां भी सफलता के लिये सकारात्मक सोच व समुचित व्यवहार निहायत ही आवश्यक है। नकारात्मक राजनीति के सहारे अव्वल तो सफलता हासिल ही नहीं हो सकती और किस्मत से हो भी जाये तो इसे लंबे समय तक कायम रख पाना तो नामुमकिन ही है। तभी तो आम तौर पर यह देखा जाता है कि चुनावी जनादेश अक्सर उसके पक्ष में ही आता है जिसने विकास व सुधार की सकारात्मक बातों पर ही अपने चुनाव अभियान को केन्द्रित रखा हो। यही लोकसभा चुनाव में हुआ था और यही तमाम विधानसभा चुनावों में हुआ है। यहां तक कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के जिस जनादेश को सतही तौर पर नकारात्मक राजनीति की जीत के नजरिये से देखा जाता है उसकी भी गहराई से पड़ताल करें तो यही नजर आता है कि सूबे के मतदाताओं ने जनोन्मुख, पारदर्शी व भ्रष्टाचारमुक्त शासन के वायदे पर भरोसा जताया है। कहने का तात्पर्य है कि राजनीति में सकारात्मक नीति व नीयत के साथ ही सकारात्मक परिणाम हासिल किया जा सकता है। वर्ना नकारात्मक राजनीति का खामियाजा कितना बुरा हो सकता है यह कांग्रेस के मौजूदा हालत खुद ही बयान कर रहे हैं। लेकिन या तो कांग्रेस के रणनीतिकारों को सकारात्मक राजनीति का महत्व समझ में नहीं आ रहा है या फिर वे इसकी अनदेखी करना ही बेहतर समझ रहे हैं। तभी तो लगातार व सिलसिलेवार चुनावी शिकस्त के बावजूद वे इससे सबक लेकर अपनी सियासी सोच में तब्दीली लाना गवारा नहीं कर रहे हैं। मसला चाहे आतंकवाद को सांप्रदायिक रंग देने का हो या फिर विपक्षी दल की हैसियत से देशहित व जनहित में रचनात्मक भूमिका निभाने की हो। हर मामले में या तो नकारात्मकता हावी है या फिर असमंजस की स्थिति। तभी तो बाटला हाऊस मुठभेड़ को जायज व फर्जी बताये जाने को लेकर तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल के साथ दिग्विजय सिंह सरीखे नेताओं की टोली आपस में ही जूतम-पैजार में उलझी हुई है जबकि पार्टी असमंजस की स्थिति में है। वह किसी भी पक्ष को ना तो सही बता पा रही है और ना ही किसी पक्ष से पल्ला झाड़ पा रही है। वह भी तब जबकि मौका ए वारदात से फरार होने के बाद दहशतगर्दी का पर्याय माने जानेवाले संगठन आईएस में शामिल हो चुके दो आतंकियों का वह वीडियो भी सामने आ चुका है जिसमें वे बाटला मामले में संलिप्तता स्वीकार करते हुए हिन्दुस्तान से इसका बदला लेने की कसम खाते दिख रहे हैं। ऐसे में तो अब इस मुठभेड़ को लेकर उठनेवाले सवाल बंद ही हो जाने चाहिये थे लेकिन अगर ऐसा होता नहीं दिख रहा है तो इसे हठधर्मिता व नकारात्मकता की राजनीति का ही नाम दिया जा सकता है। इसी प्रकार केन्द्र की मोदी सरकार को एक ओर हर मोर्चे पर नाकाम बताना और दूसरी ओर संसद में रत्तीभर सहयोग करना भी गवारा नहीं करना तो यही दर्शाता है कि कांग्रेस की मौजूदा सियासी सोच कतई सकारात्मक नहीं है। वर्ना वह कम से कम उस जीएसटी को तो हर्गिज नहीं लटकाती जिसका प्रारूप उसकी ही सरकार ने तैयार किया था। आज भी मोदी सरकार की जिन योजनाओं का श्रेय लेने के लिये कांग्रेस उसे अपनी परिकल्पना बता रही है, उसमें भी उसे यह तो मानना ही पड़ेगा कि मौजूदा सरकार ने सकारात्मक सोच के साथ ही उन योजनाओं को आगे बढ़ाया है। वर्ना मनरेगा घोटालों की भेंट चढ़ रहा था जबकि आधार को संवैधानिक जमीन ही उपलब्ध नहीं कराया गया था। खैर, सरकार की कमियों व खामियों की ओर लोगों का ध्यान खींचना तो विपक्ष से अपेक्षित ही है लेकिन इसमें सोच की सकारात्मकता निहायत ही आवश्यक है। सकारात्मक सोच, नीति व नीयत के साथ ही लोगों का विश्वास व सहानुभूति अर्जित कर पाना संभव हो सकता है। वर्ना नकारात्मक सोच का परिणाम तो विध्वंसात्मक ही होता है। लिहाजा कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को पार्टी के बेहतर भविष्य के लिये अपनी मौजूदा नीतियों पर पुनर्विचार तो करना ही होगा। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’ @ नवकांत ठाकुर # Navkant Thakur

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