शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

‘सड़क पर ही दिख रहा है संसद का भविष्य’

नवकांत ठाकुर
अगले सप्ताह से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार की कोशिश तो स्वाभाविक तौर पर यही रहेगी कि महज एक माह से भी कम अर्से के इस सत्र में अधिकतम विधेयकों को पारित करा लिया जाये ताकि मानसून सत्र में घुले-धुले कामकाज की यथासंभव भरपायी की जा सके। दूसरी ओर विपक्ष ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि संसद को सुचारू ढंग से संचालित करने की जिम्मेवारी सरकार की है लिहाजा किन्ही कारणों से सत्र का कामकाज बाधित होने की पूरी जिम्मेवारी सत्तापक्ष की ही होगी। यानि विपक्ष ने संसद के संचालन में सरकार का सहयोग नहीं करने का अपना इरादा पहले ही जता दिया है। लिहाजा जब पूरी जिम्मेवारी सरकार पर ही आ गयी है तो लाजिमी है कि वह विपक्ष को संसद में शांति व सहयोग की सीधी राह पर लाने के लिये हरसंभव हथकंडा अपनाने से कतई गुरेज नहीं करेगी। तभी तो सत्तापक्ष ने साम-दाम-दंड-भेद सरीखी तमाम रणनीतियां अमल में लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। साम-नीति के तहत मान-मानौवल करके समझौते व सहमति की राह निकालने के लिये अरूण जेटली अपनी बिटिया की शादी में आमंत्रित करने के बहाने राहुल गांधी के घर भी गये जबकि दाम-नीति अपनाते हुए भूमि अधिग्रहण विधेयक में मनमाना बदलाव करने की जिद भी छोड़ दी गयी। इसके अलावा दंड-नीति पर अमल करते हुए राहुल पर लगे दोहरी नागरिकता व अघोषित विदेशी बैंकखाता रखने के आरोपों की पड़ताल शुरू कराने के अलावा शीर्ष कांग्रेसी परिवार के इकलौते दामाद राॅबर्ट वाड्रा पर लगे जमीन घोटाले के तमाम आरोपों की परतें भी उधेड़ी जा रही हैं और छह माह के भीतर ही उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा देने की धमकी भी दी जा रही है। साथ ही भेद-नीति के तहत कूटनीतिक वार से फूट डालकर विपक्ष को धराशायी करने के लिये सपा व राकांपा से लेकर अन्नाद्रमुक, बीजद, टीआरएस व तृणमूल कांग्रेस सहित कई छोटे-बड़े दलों को कथित तौर पर इस बात के लिये सहमत कर लिया गया है कि आगामी सत्र के दौरान संसद के कामकाज को बाधित करने के प्रयासों में वे कतई भागीदार ना बनें। यानि समग्रता में देखा जाये तो सत्तापक्ष ने पहले से ही तमाम तिकड़मों को अमल में लाते हुए संसद को बाधित करने के प्रयासों को धता बताने की पूरी तैयारी कर ली है। तभी तो तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों और कांग्रेस व वामपंथी दलों के पूर्वघोषित आक्रामक तेवरों के बावजूद सरकार की ओर से सीना ठोंककर यह विश्वास जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है कि शीतसत्र का हश्र हर्गिज मानसून सत्र सरीखा नहीं होगा और इसमें जीएसटी सरीखे तमाम महत्वाकांक्षी विधेयकों को अवश्य पारित करा लिया जाएगा। दूसरी ओर सरकार की उम्मीदों व कोशिशों को सदन के भीतर हंगामे व शोरशराबे में नाकाम करने की रणनीतियों के तहत विपक्षी ताकतों ने भी अभी से अपनी तमाम योजनाएं सार्वजनिक करने में कोई कोताही नहीं बरती है। इसी सिलसिले में कांग्रेस ने भाजपा की मातृसंस्था कही जानेवाली आरएसएस को अपने सीधे निशाने पर लेते हुए जहां एक ओर उसकी तुलना सिमी सरीखे प्रतिबंधित आतंकी संगठन से कर दी है वहीं दूसरी ओर देश में कथित तौर पर लगातार बढ़ रही असहिष्णुता के मसलों से लेकर सरकार की विदेशनीति, खाद्य पदार्थों की बढ़ती महंगाई व राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों के खिलाफ की जा रही दुर्भावनापूर्ण कानूनी कार्रवाई सरीखे मसलों को लेकर सड़क पर संघर्ष का औपचारिक बिगुल बजा दिया है। रहा सवाल सरकार द्वारा विपक्ष को डरा-धमकाकर संसद में सीधी व शांतिपूर्ण राह पर लाने की कोशिशों का तो इसके प्रति भी आक्रमण को ही बचाव के माकूल हथियार के तौर पर आजमाते हुए राहुल गांधी ने बेलाग लहजे में यह एलान कर दिया है कि वे डरनेवालों में से नहीं हैं और उनकी लड़ाई आगे भी जारी रहेगी अलबत्ता अगर सरकार में दम हो तो वह उनके खिलाफ जांच कराके उन्हें जेल में डालने की हिम्मत दिखाए। यानि कांग्रेस ने तो अपनी ओर से आर या पार की लड़ाई का खुला एलान कर दिया है जबकि साम-दाम-दंड-भेद के तमाम शस्त्रास्त्रों को नाकाम होता हुआ देखने के बाद सत्तापक्ष ने भी औपचारिक तौर पर दी गयी प्रतिक्रिया में साफ शब्दों में बता दिया है कि उसे जांच कराने की धमकी ना दी जाये क्योंकि 2जी, कोलगेट, राष्ट्रमंडल खेल व जमीन घोटाले से लेकर अवैध विदेशी बैंकखाते सरीखे मामलों सहित तमाम आरोपों की जांच पहले ही शुरू करा दी गयी है जिसमें जो भी दोषी पाया जाएगा उसे हर्गिज बख्शा नहीं जाएगा। यानि सड़क पर आर-पार की लड़ाई का एलान हो चुका है और देश की सीमाएं लांघकर कांग्रेस ने विश्व बिरादरी को यह संदेश प्रसारित कर दिया है कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में कुछ भी सकारात्मक होने की उम्मीद ना रखी जाये। इससे इतना तो स्पष्ट ही है कि सकारात्मक मसलों पर भी संसद में सरकार को विपक्ष का सहयोग मिलने की अब दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं है। खैर, इस गतिरोध को तोड़ने के दिखावे में अब विभिन्न स्तरों पर सर्वदलीय बैठकों का दौर शुरू होना तो लाजिमी ही है लेकिन सड़क पर दिख रहे लड़ाई के स्वरूप से संसद के शीतसत्र की जो तस्वीर उभर रही है उससे यह पूरी तरह स्पष्ट है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत देश में लागू संसदीय शासन की मर्यादा, परंपरा व तकाजों के धुर्रे बिखरने का जो दुर्भाग्यपूर्ण सिलसिला मानसून सत्र में शुरू हुआ था वह बदस्तूर जारी ही रहनेवाला है। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’ 

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