सोमवार, 7 मई 2018

‘दुश्मनी ने दोस्ती का सिलसिला रहने दिया’

मुनव्वर राणा लिखते हैं कि- ‘हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है, हम अकबर हैं हमारे दिल में जोधाबाई रहती है, गिले-शिकवे जरूरी हैं अगर सच्ची मोहब्बत है, जहां पानी बहुत गहरा हो थोड़ी काई रहती है।’ वाकई जहां दोस्ती का रिश्ता काफी गहरा हो वहां आप-जनाब के लहजे में तो कतई बातचीत नहीं होती। लिहाजा कोई अगर किसी को यथोचित सम्मान नहीं दे रहा हो और उसके सामने ही उसे गालियां बक रहा हो तो यह गलतफहमी नहीं पालनी चाहिये कि उनके रिश्तों में कोई खटास है या अंदरूनी तौर पर वे एक-दूसरे को नापसंद करते हैं। बल्कि इस बात के आसार काफी अधिक हो सकते हैं कि उनका रिश्ता इस कदर मजबूत है कि गालियों के अलावा अंतरंगता दिखाने की कोई दूसरी राह उन्हें सूझ ही नहीं रही है। अंतरंगता की इस उलटबांसी को सामाजिक ताने-बाने में साले-बहनोई या देवर-साली के रिश्तों में भी देखा जा सकता है और अरसे से बिछड़े दो दोस्तों की मुलाकात के वक्त भी इस तथ्य को परखा जा सकता है। दूसरे नजरिये से देखें तो जिस्म पर चाकू चलानेवाला हमेशा दुश्मन ही नहीं होता है। बल्कि चिकित्सक भी मर्ज का जड़ से इलाज करने के लिए चाकू से ही जिस्म की चीड़-फाड़ करता है। लिहाजा अगर कोई किसी के जिस्म पर चाकू चला रहा हो तो आंखें मूंद कर यह कतई नहीं मान लेना चाहिये कि वह उसका दुश्मन ही है। हो सकता है कि वह उसका चिकित्सक हो जो उसे उसकी बीमारी से निजात दिलाने के लिए उसके जिस्म को चाकू से काट-कुरेद रहा हो। सियासी समीकरणों के नजरिये से ऐसा ही मामला सामने आया है मध्य प्रदेश में जहां सतही तौर पर देखने से यही समझ में आ रहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आगामी विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चैहान को पार्टी का चेहरा नहीं बनाए जाने का संकेत देकर शिवराज की उम्मीदों, अरमानों व अपेक्षाओं की गला काट कर हत्या कर दी है। लेकिन गहराई से परखाने पर पूरी तस्वीर का दूसरा ही रंग दिखाई पड़ रहा है। सच पूछा जाए तो शाह ने शिवराज को चेहरा बनाने से इनकार करके उन्हें ऐसा अभयदान दे दिया है जिसमें जीत का सेहरा तो स्वाभाविक तौर पर उनके नेतृत्व में वर्ष 2005 के नवंबर माह से लगातार सूबे की सेवा कर रही सरकार के सिर ही बंधेगा लेकिन अगर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा जो इसकी रत्ती भर की जवाबदेही भी शिवराज की नहीं होगी। इसके अलावा पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं होने के कारण ना तो शिवराज को व्यक्तिगत तौर पर पार्टी की नैया पार लगाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा और ना ही पार्टी को सांगठनिक व सतही स्तर पर जारी सत्ता विरोधी लहर से जूझने के लिये मजबूर होना पड़ेगा। इसके अलावा शिवराज के विरोधियों के पास भी अब यह बहाना नहीं बचेगा कि वे भाजपा को तो जीत दिलाना चाहते थे लेकिन शिवराज को लाभ दिलाना उन्हें गवारा नहीं हो रहा था। यानि शाह ने शिवराज के चेहरे को तात्कालिक तौर पर मुख्यमंत्री पद की दौड़ से अलग करके एक ही तीर से कई निशाने साध लिये हैं। वैसे भी इतिहास गवाह है कि भाजपा ने जिसको भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ा है उसकी अपनी सीट ही खतरे में आ जाती रही है। बात चाहे हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल की करें या झारखंड में अर्जुन मुंडा की। दोनों ही सूबों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को तो बहुमत हासिल हो गया लेकिन पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने वाले धूमल और मुंडा अपना चुनाव हार गये। कहा तो यही जाता है कि धूमल और मुंडा को विरोधियों ने नहीं हराया। उन्हें उन अपनों ने ही हरा दिया जो मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी को पचा नहीं पा रहे थे। जाहिर है कि अगर मध्य प्रदेश में शिवराज को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने की पहल की जाती तो उनका हाल भी मुंडा या धूमल जैसा होने से कतई इनकार नहीं किया जा सकता था। लेकिन उनके चेहरे को आगे करने से इनकार करके शाह ने शिवराज का यह संकट भी समाप्त कर दिया है और उनके विरोधियों के लिये सकारात्मक राजनीति की राह पर आगे बढ़ने की चुनौती पेश कर दी है। यानि अब अगर किसी ने भी संगठन के हितों के आड़े आने की गलती की तो वह शिवराज का नहीं बल्कि सीधे तौर पर भाजपा का ही दुश्मन माना जाएगा। जाहिर है कि इतनी बड़ी गलती करने की जुर्रत तो भाजपा का कोई नेता नहीं कर सकता। लिहाजा पार्टी में सांगठनिक स्तर पर जारी गुटबाजी का शाह ने एक ही झटके में जो तोड़ निकाला है वह भी काबिले तारीफ ही कहा जाएगा। लेकिन इस सबसे अलग हटकर भी देखा जाए तो शाह ने औपचारिक तौर पर भले ही यह संकेत दिया हो कि पार्टी की ओर से इस बार शिवराज को औपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा लेकिन उन्होंने शिवराज के हितों के उलट एक बात भी नहीं कही है। यानि आगामी चुनाव में पार्टी की ओर से दोबारा जनादेश मांगने की पूरी रणनीति शिवराज के कार्यकाल में हुए काम काज पर ही टिकी होगी। ऐसे में पार्टी को बहुमत हासिल होने की स्थिति में शिवराज को मुख्यमंत्री बनाने से परहेज बरतने का कोई कारण ही नहीं रहेगा। ‘जैसी नजर, वैसा नजरिया।’   @नवकांत ठाकुर #Navkant_Thakur

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