शुक्रवार, 11 जनवरी 2013


भारत ने बिठाया सख्ती व संयम के बीच संतुलन
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इंसाफ की गुहार लगाने से सरकार का इनकार

              जम्मू कश्मीर के मेढ़र में स्थित नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के बलूच रेजीमेंट के सौनिकों द्वारा भारत की सीमा में घुसकर सीमा पर गश्त लगा रहे भारतीय सेना के दो जवानों की हत्या कर दिये जाने और एक सैनिक का सिर काटकर ले भागने की घटना को लेकर केन्द्र सरकार ने सख्ती व संयम के बीच संतुलन की रणनीति पर अमल करना ही बेहतर समझा है। इसी रणनीति के तहत जहां एक ओर केन्द्र सरकार ने द्विपक्षीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ पूरी सख्ती दिखाने में कोई कोताही नहीं बरती है वहीं दूसरी ओर संयम का प्रदर्शन करने के क्रम में ना सिर्फ सैन्य स्तर पर पूरे अनुशासन का मुजाहिरा किया जा रहा है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाक की इस अमानवीय नापाकियत के खिलाफ विरोध दर्ज कराने से भी परहेज बरत लिया गया है। भारत सरकार ने पाकिस्तान की ओर से की गयी उकसावे की कूटनीति के खिलाफ जिस तरह से सख्ती व संयम के बीच बेहतरीन अनुशासन का संतुलन साधा है उसी का नतीजा है कि अपनी नापाक हरकत को जायज ठहराने की पाकिस्तान की हर रणनीति पूरी तरह नाकाम हो गयी है और देश के भीतर भी इस मसले को लेकर किसी भी स्तर पर असहमति का माहौल नहीं पनप पाया है। केन्द्र सरकार की ओर से साफ कर दिया गया है पाकिस्तान की सेना ने जिस अमानवीय हरकत को अंजाम दिया है उसे भारत कतई स्वीकार नहीं कर सकता है और पाकिस्तान को आगामी दिनों में कूटनीतिक स्तर पर इसका अंजाम भुगतना ही पड़ेगा। भारतीय विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद की मानें तो पाकिस्तान की सेना ने जिस वारदात को अंजाम दिया है उसका असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ना लाजमी ही है और इसके नतीजे में अब पाकिस्तान पर भरोसा करके दोस्ती की राह तैयार करने की भारत की ओर से जो पहल की गयी थी उसका आगे भी जारी रह पाना नामुमकिन की हद तक मुश्किल हो गया है। 
                 सलमान के मुताबिक पाकिस्तानी उच्चायुक्त सलमान बशीर को तलब करके साफ शब्दों में बता दिया गया है कि पाकिस्तान की फौज ने भारतीय सेना के खिलाफ जिस अमानवीय वारदात को अंजाम दिया है है उसके नतीजे में आगामी वार्ताओं में भारत कतई पाकिस्तान पर भरोसा करके अपनी ओर से कोई नयी पहल करने की स्थिति में नहीं है। सलमान के मुताबिक भारतीय विदेश सचिव रंजन मथाई ने लिखित तौर पर बशीर को बता दिया है कि जब तक पाकिस्तान इस ताजा वारदात में अपनी भूमिका को स्वीकार कर पूरे मामले की जांच कराने व दोषियों को उनके करतूत की सजा दिलाने की पहल नहीं करता तब तक दोनों देशों के बीच जारी विश्वास बहाली की प्रक्रिया का कोई नतीजा सामने नहीं आ सकता है। यहां तक कि सलमान के साथ ही रक्षामंत्री एके एंटनी ने पूरे मामले की औपचारिक जानकारी देने के बहाने प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह के साथ जो मुलाकात की उसके नतीजे के तौर पर भारत ने पाकिस्तान के सामने साफ शब्दों में जता दिया है कि शांति वार्ता की पहली शर्त सीमा पर शांति का माहौल कायम रखना ही है और इस शर्त का पालन कर पाने में नाकाम रहने के नतीजे में पाकिस्तान को भारत के साथ किसी भी तरह की रियायत की उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। पाकिस्तान के प्रति इनत ल्ख तेवरों का इजहार करने के क्रम में केन्द्र सरकार ने यह बात साफ कर देने में भी कोई संकोच नहीं बरता है कि पड़ोसी मुल्क के साथ हमारे बनते बिगड़ते रिश्तों का फायदा दुनिया के किसी अन्य मुल्क को उठाने की इजाजत भारत की ओर से हर्गिज नहीं दी जा सकती है। इसी वजह से सलमान ने बेलाग लहजे में साफ कर दिया है कि भारत सरकार की ओर से पाक की नापाक हरकतों के प्रति विश्व मंच पर कोई आवाज नहीं उठायी जायेगी और इस मामले को भी भारत द्विपक्षीय स्तर पर ही सुलझाने को तरजीह देगा। 
                     दूसरी ओर केन्द्र सरकार ने भले ही इस पूरे मामले के कूटनीतिक अंतर्राष्ट्रीय महत्व को बेहतर ढ़ंग से समझते हुए सख्ती व संयम के बीच संतुलन की कूटनीतिक राह अख्तियार करने में जरा भी देरी नहीं लगायी हो लेकिन केन्द्र की संप्रग सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस से लेकर मुख्य विपक्षी भाजपा तक ने पाक की इस नापाक हरकत को असहनीय व प्रतीकात्मक कार्रवाई के लिये काफी बताने में कोई कोताही नहीं बरती है। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने यहां तक कह दिया है कि पाकिस्तान को भारत के सब्र का इम्तिहान लेने की कोशिश नहीं करनी चाहिये वर्ना इस तरह की हरकत का अंजाम वह पहले भी भुगत चुका है और उसे आगे भी भुगतना ही पड़ेगा। दूसरी ओर भाजपा के मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने भी पाकिस्तान के साथ जारी भारत की बातचीत व खेल व व्यापार के स्तर पर सुधर रहे संबंधों को जायज ठहराते हुए केन्द्र सरकार को केवल इतनी हिदायत देना ही मुनासिब समझा है कि भारत सरकार को पाकिस्तान के मामले में एक लक्षमणरेखा का निर्धारण अवश्य करना चाहिये। कांग्रेस की ओर से अल्वी ने भी आज स्वीकार किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाक के साथ दोस्ती बढ़ाने की कोशिश की थी तो हमें तोहफे में कारगिल की लड़ाई झेलनी पड़ी थी और आज जब खेल, व्यापार व कूटनीतिक स्तर पर दोनों देशों के बीच आपसी संबंध सामान्य होने की कगार पर आते दिख रहे हैं तो एक बार फिर पाकिस्तानी फौज इन कोशिशों को भंवर में फंसाने की साजिश रच रही है। कुल मिलाकर भारत ने सख्ती व संयम के बीच संतुलन की जिस कूटनीति का प्रदर्शन किया है उससे यह बात स्पष्ट हो गयी है कि भारत सरकार को बेहतर पता है कि पाकिस्तान का नियंत्रण केवल वहां के राजनीतिक नेताओं के हाथों में ही नहीं है बल्कि आज भी पाक की फौज और वहां के समाज के बीच कोई वैचारिक तालमेल कायम नहीं हो पाया है। यहां तक कि ‘बहरा नाचे अपनी ही ताल’ की तर्ज पर पाकिस्तान की सरकार, वहां के आम बाशिंदे, फौज और न्यायिक व्यवस्था परस्पर एक दूसरे को नीचा दिखाने के साथ ही अपनी मनमानी करने पर आमादा हो चुके हैं लिहाजा भारत के सौनिकों के साथ पाकिस्तान की फौज ने जो अमानवीय हरकत की है उसे अलग अलग स्तर पर अलग तरीके से निपटना भारत सरकार की मजबूरी ही है। इसी वजह से भारत ने सख्ती व संयम के बीच संतुलन साधकर पाक की नापाकियत से निपटने की जो रणनीति अपनायी है उसके अलावा पाकिस्तान को काबू में रखने का सरकार के पास कोई चारा भी नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत सरकार की ओर से पाकिस्तान को विश्वास के इस संकट की घड़ी में भी दोस्ती का जो मूल मंत्र पढ़ाने की कोशिश की गयी है उसे पाकिस्तान का विभाजित कूढ़मगज नेतृत्व वर्ग कितना आत्मसात कर पाता है। 

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