करवट बदल रही है बिहार की सियासत
सहयोगियों के सब्र की कड़ी परीक्षा ले रही है भाजपा
नवकांत ठाकुर
बिहार विधानसभा चुनाव के सियासी समीकरण में तब्दीलियों का सिलसिला लगातार जारी रहने के क्रम में धर्मनिरपेक्ष महामोर्चे ने नये सिरे से अपनी जमीनी कमजोरियों को दूर करने की कोशिशें तेज कर दी हैं जबकि कागजी तौर पर मजबूत स्थिति में नजर आ रहे भाजपानीत राजग के राहों की कठिनाइयां दिनोंदिन बढ़ती दिख रही है। जदयू, राजद व कांग्रेस की तिकड़ीवाले धर्मनिरपेक्ष महामोर्चे द्वारा यादव वोटबैंक में सेंध लगाने में जुटे राजद से निकाले जा चुके सीमांचल के कद्दावर सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी को चुनाव में हिस्सा नहीं लेने के लिये मनाने की कोशिश हो रही है। साथ ही मुस्लिम वोटबैंक की टूट को टालने के लिये असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को धर्मनिरपेक्ष महामोर्चे में शामिल होने के लिये सहमत करने का प्रयास भी किया जा रहा है। इसके अलावा जिन निवर्तमान विधायकों को राजग में टिकट नहीं मिल पा रहा है उनको भी अपने पाले में लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। दूसरी ओर भाजपानीत राजग के भीतर सतही तौर पर भले ही कोई बड़ी समस्या नहीं दिख रही हो लेकिन अंदरूनी हकीकत यही है कि चुनावी समीकरण को साधने की दिशा में उसकी समस्याएं लगातार बढ़ी दिख रही हैं। अव्वल तो सीटों के बंटवारे में राजग के तमाम घटक दलों का हित टकराने के कारण सहमति की राह तैयार करने में काफी मुश्किलें आ रही हैं और दूसरे अपनी जीत सुनिश्चित करने के बजाय सहयोगी दल की हार पक्की करने की प्रतिस्पर्धा राजग में बढ़ती ही जा रही है।
दरअसल पिछले कुछ दिनों तक कागजी समीकरण में परंपरागत वोटों के बिखराव के कारण जिस धर्मनिरपेक्ष महागठजोड़ की हालत काफी पतली नजर आ रही थी उसने अपनी इस कमजोरी को दूर करने में पूरी ताकत झोंक दी है। हालांकि अभी साफ तौर पर उसे इसका कोई ठोस या स्पष्ट फायदा हासिल नहीं हो पाया है लेकिन यादव वोटबैंक में सेंध लगा रहे पप्पू यादव को किसी भी मोर्चे में पनाह नहीं मिलने के कारण अब उनकी पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़के फजीहत कराने के पक्ष में नहीं दिख रही है। दूसरी ओर सूबे की मुस्लिम बहुलतावाली 60 सीटों पर नजरें गड़ाए हुए ओवैसी को भी अगर ‘वोटकटवा’ व ‘भाजपा की अंदरूनी सहयोगी’ की नकारात्मक छवि से उबरना है तो उन्हें भी किसी ऐसे सशक्त सहयोगी की जरूरत होगी जिसके साथ जुड़कर सूबे की तीसरी ताकत के तौर पर वे खुद को स्थापित कर सकें। इसी जमीनी हकीकत को भांपते हुए पप्पू ने तो ओवैसी की ओर दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा दिया है लेकिन अभी ओवैसी ही उहापोह की स्थिति में दिख रहे हैं। जाहिर है कि अगर पप्पू और ओवैसी का गठजोड़ हो गया तो धर्मनिरपेक्ष महामोर्चे का पूरा गणित ही गड़बड़ा सकता है। इसी संभावना से बचने के लिये शीर्ष राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने ओवैसी को धर्मनिरपेक्ष महामोर्चे में शामिल होने का औपचारिक न्यौता दे दिया है जबकि सूत्रों के मुताबिक पप्पू को चुनाव से अलग रखने के लिये उनकी कांग्रेसी सांसद पत्नी रंजीता रंजन को लगाया जा चुका है। यानि व्यावहारिक रणनीतियों को अमल में लाते हुए अपनी कागजी कमजोरियों को दूर करने के लिये धर्मनिरपेक्ष महामोर्चे ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। दूसरी ओर भाजपानीत राजग में सतही तौर पर भले ही एकजुटता दिख रही हो लेकिन सूत्रों की मानें तो जीती हुई सीटों का बंटवारा नहीं करने की नीति के कारण राजग के सभी घटक दलों में भारी आक्रोश का माहौल दिख रहा है जिसका रालोसपा की ओर से इजहार भी हो गया है। साथ ही सूत्रों की मानें तो खुद को दलितों का सबसे बड़ा नेता साबित करने की जंग में ना तो लोजपा अपना वोट हम को हस्तांतरित करने के लिये तैयार है और ना ही हम अपने समर्थकों को लोजपा के पक्ष में वोट करने के लिये प्रेरित करना चाहता है। दूसरी ओर जीती हुई सीटों का बंटवारा नहीं करने की भाजपा की नीति से नाराज होकर उसके सहयोगी भी अपने प्रभावक्षेत्र का परंपरागत वोट किसी अन्य सहयोगी के उम्मीदवार को हस्तांतरित करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। बहरहाल जहां एक ओर धर्मनिरपेक्ष महामोर्चा अपने उखड़े-बिखरे कील-कांटों को दुरूस्त करने में जुटा हुआ है वहीं राजग का खेमा आपस में ही एक-दूसरे के धुर्रे बिखेरने में लगा हुआ है। लिहाजा तेजी से आ रहे इन बदलावों के कारण बिहार का चुनावी समीकरण अब नयी करवट लेता हुआ दिख रहा है जो अंततोगत्वा निर्णायक भी साबित हो सकता है।
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