‘रफू की ताकीद करनेवाले, कहां-कहां अब रफू करेंगे’
सूबे में सत्तारूढ़ सपा की अंदरूनी हालत ऐसी ही दिख रही है जिसके बारे में कहा गया है कि ‘रफू की ताकीद करनेवाले कहां-कहां अब रफू करेंगे, लिबासे-हस्ती का हाल ये है, जगह-जगह से मसक रहा है।’ वाकई सपा की लगातार यत्र-तत्र-सर्वत्र मसकती दिख रही लिबासे-हस्ती को संभालने की कोशिश करनेवालों के लिये सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आखिर रफू का काम शुरू कहां से किया जाये। हालत यह है कि एक सिरा पकड़ो तो दूसरा फिसल जाता है। एक को मनाओ तो दूसरा रूठ जाता है। वास्तव में प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचा देश इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि सूबे में सत्तारूढ़ सपा के भीतर जो संग्राम छिड़ा हुआ है वह ना तो इतनी जल्दी समाप्त होनेवाला है और ना ही दबाने से दबनेवाला है। गनीमत है कि नेताजी की धुरी के प्रति सबकी आस्था बदस्तूर कायम है लिहाजा वे ठोक कर यह कहने का हौसला दिखा रहे हैं कि उनके रहते पार्टी में फूट नहीं हो सकती। हालांकि बेशक सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में जारी महासंग्रम पर काबू पाने के लिये खुद ही मोर्चा संभाल लिया है और सुलह के फार्मूले पर सहमति बनाने का प्रयास जोरों पर जारी है। लेकिन सूबे की आवाम से लेकर आला निजाम तक को यह बेहतर मालूम है कि चुनाव के मद्देनजर टकराव की लपटें सतही तौर पर फिलहाल बुझ भी जाएं मगर इसके भीतर सुलग रहा ज्वालामुखी निर्णायक तौर पर कभी ना कभी फूटेगा जरूर। और जब यह फूटेगा तो इसका लावा निश्चित तौर पर सपा की एकजुटता को अपने साथ बहा ले जाएगा। इस हकीकत से बाखबर होने के बावजूद जिस तरह से मामले की गहराई से सर्जरी करके पूरे मवाद व सड़े-गले हिस्से को काटकर निकालने के बजाए महज मरहम-पट्टी करके इस विषैले जख्म को दबाने-छिपाने की कोशिश की जा रही है वह निश्चित तौर पर आत्मघाती ही मानी जाएगी। वास्तव में देखा जाये तो सपा की ओर से पूरे विवाद की जो वजहें गिनायी जा रही हैं वह सतही तौर पर भले ही सटीक मालूम पड़ती हों लेकिन गहराई से परखने पर वह नकली ही दिखाई पड़ती है। पर्देदारी की लाख कोशिशों के बावजूद सपा का शीर्ष नेतृत्व इस हकीकत को दबा या छिपा नहीं सकता कि संगठन में जारी महासंग्राम की असली वजह ना तो अखिलेश को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाया जाना है, ना शिवपाल से महत्वपूर्ण मंत्रालय छीना जाना और ना ही गायत्री प्रजापति सरीखे मंत्रियों को सरकार से रूखसत किया जाना। यहां तक कि केबिनेट सचिव के पद पर बदलाव किये जाने या आला नौकरशाहों को ताश के पत्तों की तरह फेंटे जाने को भी इस महासंग्राम की वजह मानना बेवकूफी ही होगी। वास्तव में ये सभी घटनाक्रम महज परिणाम है जिसका कारण है संगठन पर वर्चस्व की वह लड़ाई जो सत्ता से लेकर संगठन तक पर पूर्ण एकाधिकार कायम करने के लिये छिड़ी हुई है। इस जंग की पटकथा तभी से लिखी जा रही है जब से शिवपाल ने संगठन में जमीनी स्तर तक अपनी मजबूत पैठ बनानी शुरू कर दी थी जबकि मुलायम ने पुत्रमोह में संगठन व सरकार की कमान अखिलेश को सौंपने का फैसला किया था। जाहिर तौर पर हर खासो-आम की यही ख्वाहिश होती है कि उसका उत्तराधिकारी उसका अपना बेटा ही हो। बेटे को दरकिनार कर किसी अन्य को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने की तो किसी से अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। लिहाजा यही काम मुलायम ने भी किया तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था। उन्होंने अपने खून-पसीने से जिस सपा संगठन को खड़ा किया उसकी बागडोर वे अपने बेटे के हाथों में सौंपना चाह रहे हैं तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। लेकिन सपा को सत्ता के शीर्ष पर लाकर खड़ा करने में उनके अन्य बंधु-बांधवों ने जो योगदान किया है उसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती। आज भी संगठन में जमीनी स्तर पर शिवपाल का जो प्रभाव है उसे झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसे में अपने लिये पूरे मेहनताने की उनकी मांग को भी खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन एक तरफ जोतने के एवज में पूरा खेत हथियाने की उनकी कोशिश और दूसरी ओर जोतने-बोने की जहमत उठाए बगैर खड़ी फसल को अपने खलिहान में लाने की अखिलेश की जिद के बीच जारी टकराव वास्तव में ऐसा ही है जैसे गाय को पाले-खिलाए कोई और, उसकी मलाई खाए कोई और। यह लंबे समय तक तो चल नहीं सकता। तभी तो अब गाय को पालने-खिलानेवाले और उसकी दूध-मलाई पर कब्जा जमानेवाले के बीच बुरी तरह ठन गयी है। ऐसे में परेशान है उस गाय का मालिक जो पकी उम्र और थके शरीर के साथ ना तो गाय की पूरी सेवा व हिफाजत करने में सक्षम है और ना ही अपनी कमजोर हाजमे के कारण इसकी दूध-मलाई से कोई वास्ता रखना चाहता है। बल्कि उसकी कोशिश है कि गाय की रस्सी अपने बेटे के हाथों में थमा दे ताकि वह उसे पाले भी और दुहे भी। लेकिन मसला है कि बेटे के घास से गाय का पूरा पेट नहीं भर सकता जिसके नतीजे में दूध-मलाई का संकट उत्पन्न होना तय है। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि पूरा परिवार मिलजुल कर गाय की सेवा करते हुए मिल बांटकर दूध-मलाई खाना पसंद करता है या फिर आपसी झगड़े में गाय का दूध सुखाकर उसके साथ खुद को भी तबाह-बर्बाद कर लेता है। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’ @नवकांत ठाकुर # Navkant Thakur