‘दोष किसी और का है दोषी कोई और’
नवकांत ठाकुर
संसद के मौजूदा मानसून सत्र का दूसरा हफ्ता भी हंगामे और बवाल की भेंट चढ़ने के बाद यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि आखिर इसका दोष किस पर डाला जाये। लगातार दो सप्ताह से संसद नहीं चल पाने की वजहों पर गौर करें तो इसके लिये सीधे तौर पर विपक्ष को जिम्मेवार ठहरा देना तो बेहद आसान है लेकिन सवाल है कि विपक्ष ने जिन मसलों को तूल देते हुए संसद को बाधित करने का पहले से ही ऐलान किया हुआ था उस पर उसे मनाने, समझाने व सहमति की राह तलाशने के बजाय सत्तापक्ष द्वारा जिस तरह से उसे लगातार उकसाने का प्रयास किया जा रहा है उसे किस रूप में देखा जाये। एक मिनट के लिये अगर यह मान भी लिया जाये कि कांग्रेस ने देश के विकास को बाधित करने और केन्द्र सरकार को नाकारा व निकम्मा साबित करने की सियासी साजिश के तहत निराधार तथ्यों को तूल देते हुए संसद में गतिरोध, हंगामे व बवाल का सिलसिला जारी रखा हुआ है, फिर भी यह बात समझ से परे है कि सत्तापक्ष भी लगातार संसद में जारी बवाल की आग में उकसावे का प्रेट्रोल डालता हुआ क्यों दिखाई पड़ रहा है। दरअसल जिस तरह से सत्तापक्ष ने विरोध व गतिरोध की चिंगारी पर अपने आक्रोश व उकसावे की आग बरसाने का सिलसिला जारी रखा हुआ है उससे तो कतई नहीं लगता है कि वह वास्तव में संसद को सुचारू ढंग से चलाने के प्रति जरा भी गंभीर है। माना कि कांग्रेस ने जिद ठानी हुई है कि जब तक ललित गेट मामले में सुषमा स्वराज व वसुंधरा राजे का और व्यापम घोटाले में शिवराज सिंह चैहान का इस्तीफा नहीं हो जाता है तब तक वह कतई संसद को सुचारू ढंग से संचालित करने में सहभागी नहीं बनेगी। लेकिन इस मसले पर बाकी विपक्षी दलों ने अब तक ऐसी किसी ठोस जिद का तो मुजाहिरा ही नहीं किया है। अलबत्ता जनता परिवार के घटक दल तो संसद के संचालन में सरकार का सहयोग करने के लिये पूरी तरह तैयार हैं। इसी प्रकार वामपंथी दलों ने भी संसद में जारी गतिरोध पर अपना आक्रोश जताने में कोई कोताही नहीं बरती है। साथ ही बीजद व अन्ना द्रमुक सरीखे गुटनिरपेक्ष दलों ने भी संसद को बाधित रखे जाने पर अपनी चिंता ही जाहिर की है और राकांपा व द्रमुक सरीखे संप्रग के घटक दलों को भी संसद में जारी गतिरोध कतई रास नहीं आ रहा है। इन तथ्यों से इतना तो स्पष्ट है कि संसद बाधित रखने में कांग्रेस का सहयोग करना किसी भी रसूखदार दल को कतई गवारा नहीं हो रहा है। लिहाजा गैरकांग्रेसी विपक्ष को विश्वास में लेकर सरकार के लिये संसद में कांग्रेस को अलग-थलग करना काफी आसान हो सकता था। लेकिन अब तक ना तो विपक्षी दलों के साथ सर्वदलीय बैठक आयोजित करने की पहल हुई है और ना ही कांग्रेस के साथ सहमति की राह निकालने का कोई ठोस प्रयास हुआ है। उल्टे पिछले सप्ताह संसदीय कार्यमंत्रालय ने अपनी ओर से जब अनौपचारिक तौर पर सर्वदलीय बैठक आयोजित करने की योजना बनायी तो उसी दिन संसद के भीतर सत्तापक्ष के सांसदों ने राॅबर्ट वाड्रा की आड़ लेकर जिस तरह से सोनिया गांधी पर निजी हमला कर दिया जिससे आहत होकर कांग्रेस ने बैठक में शिरकत करने से इनकार कर दिया नतीजन बैठक हो ही नहीं सकी। हालांकि तय वक्त पर वामदलों के नेताओं से लेकर कई अन्य विपक्षी दलों के नेता भी बैठक के लिये एकत्र हो चुके थे लेकिन सरकार ने कांग्रेस को अलग छोड़कर बाकी विपक्षी दलों के साथ बातचीत करना उचित नहीं समझा। इसी प्रकार आज भी लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन द्वारा बुलाई गई बैठक से ऐन पहले वित्तमंत्री अरूण जेटली द्वारा बेहद आक्रामक लहजे में कांग्रेस पर ‘तुच्छ, नकारात्मक व गैर जिम्मेदाराना’ राजनीति करने का आरोप लगाने की पहल किये जाने के साथ ही इस बैठक में भी गतिरोध समाप्त होने की कोई राह निकलने की उम्मीद सिरे से समाप्त हो गई। वैसे भी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आनंद शर्मा की मानें तो आज संसद की बैठक शुरू होने से पहले ही सरकार ने विपक्ष को आश्वस्त कर दिया था कि चुंकि सभी दलों के अधिकांश शीर्ष नेता पूर्व राष्ट्रपति डाॅ एपीजे अब्दुल कलाम को अंतिम विदाई देने के लिये रामेश्वरम गये हुए हैं लिहाजा पंजाब में हुए आतंकी हमले के मसले पर ना तो गृहमंत्री द्वारा संसद में बयान दिया जाएगा और ना ही आंतरिक सुरक्षा के मसले पर चर्चा कराई जाएगी। लेकिन इस वायदे से मुकरते हुए अचानक ही पहले तो गृहमंत्री का बयान करा दिया गया और जब इस पर विपक्ष ने हंगामा खड़ा किया तो उस पर सियासी स्वार्थ के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी करने की तोहमत लगा दी गयी। जाहिर है कि इस तरह के उकसावे की कूटनीति का तो यही मतलब निकाला जाएगा कि अब सरकार भी नहीं चाह रही है कि संसद की कार्रवाई सुचारू ढंग से संचालित हो सके। इससे विपक्ष पर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाते हुए उसे सार्वजनिक तौर पर बदनाम करना सरकार के लिये काफी आसान हो जाएगा। बहरहाल समग्रता में देखा जाये तो संसद को बाधित रखने के लिये भले ही विपक्ष को ही दोषी ठहराया जा रहा हो लेकिन हकीकत यही है कि इसके लिये जितनी दोषी विपक्ष की सियासी जिद है उससे जरा भी कम सत्ता पक्ष की उकसावे की कूटनीति भी नहीं है। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’