‘हवाबाजी व दगाबाजी बनाम हवालाबाजी की लफ्फाजी’
नवकांत ठाकुर
सियासी रंगमंच पर अक्सर अलग अलग वक्त में कुछ अलग अलग शब्दों का बड़ा शोर रहता है। मसलन लोकसभा चुनाव की सरगर्मियों के दौरान ‘अच्छे दिन’, ‘फेंक’ू और ‘पप्पू’ सरीखे शब्द हर तरफ छाये हुए थे। बाद में ‘चुनावी जुमला’ काफी चर्चा में रहा। अब इन दिनों ‘हवाबाजी’ और ‘दगाबाजी’ का बड़ा शोर है। इसमें एक ओर खड़ी दिख रही है केन्द्र की मोदी सरकार और दूसरी ओर खड़े हैं तमाम गैरभाजपाई दल। दोनों एक-दूसरे पर दनादन गोले दाग रहे हैं हवाबाजी और दगाबाजी के। कांग्रेस हो या सपा-बसपा, लालू हों या नितीश, ममता हों या केजरीवाल, या फिर ओवैसी या वामपंथी ही क्यों ना हों। सभी इस बात पर एकमत हैं कि मोदी सरकार पूरी तरह हवाबाजी पर ही टिकी हुई है। धरातल पर कुछ होता हुआ नहीं दिख रहा। तमाम चुनावी वायदे भुला दिये गये। ‘कहां तो वादा था चिरागां का हर घर के लिये, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिये।’ ना कालाधन आया ना अच्छे दिन आए। उल्टे राह ऐसी पकड़ ली गयी है कि आम लोगों का जीना मुहाल है। दाल और प्याज भी गरीब को मयस्सर नहीं है। यानि विरोधियों के मुताबिक विकास व सुशासन की हवाबाजी करते हुए मोदी सरकार ने हर मामले में दगाबाजी ही की है। दूसरी ओर सत्तापक्ष की दलील है कि अपनी कमियां, खामियां, गलतियां व नाकामियां छिपाने के लिये विरोधी पक्ष सरकार पर निराधार प्रहार कर रहा है। इनके मुताबिक सियासी लाभ के लिये देश के साथ धोखेबाजी तो इनके विरोधी कर रहे हैं। कांग्रेस जीएसटी और भूमि अधिग्रहण विधेयक सरीखे विकासवादी सुधारात्मक पहलों पर अड़ंगा लगाकर देश को आगे बढ़ने से रोकना चाह रही है। क्षेत्रीय पार्टियां जनता को गुमराह करने के लिये बेमानी बयानों की हवाबाजी कर रही हैं। संसद को चलने नहीं दिया जा रहा। मंत्रियों को बदनाम करने के लिये कुतर्क गढ़े जा रहे हैं। थोक के भाव में शुरू की गयी जनहितकारी योजनाओं की अनदेखी की जा रही है और अपना पुराना पाप छिपाने के लिये सरकार से सौदेबाजी करने का प्रयास किया जा रहा है। यानि सत्ता पक्ष की नजर में दगाबाजी कर रहा है विपक्ष। खैर, दगाबाजी की शिकायत क्षेत्रीय दलों के बीच आपस में भी है। मसलन मुलायम सिंह यादव को शिकायत है कि लालू और नितीश की जोड़ी ने उनके साथ दगाबाजी की है। कहने को उन्हें जनता परिवार का मुखिया बना दिया गया लेकिन ना तो उन्हें समुचित सम्मान मिला और ना ही स्थान। बिहार की चुनावी रणनीति तय करने के क्रम में इनसे पूछा तक नहीं गया। ना ही एक भी सीट इनके लिये छोड़ी गयी। वह तो बाद में जब राकांपा ने महागठजोड़ से किनारा कर लिया तब उसके कोटे की तीन सीटों में लालू ने अपनी दो सीटें जोड़कर सपा को देने की घोषणा की। ऐसे में सपा प्रमुख को लगता है कि उनके साथ सिर्फ दगाबाजी ही नहीं हुई है बल्कि उन्हें सरासर अपमानित किया गया है। खैर, कहने को दगाबाजी व हवाबाजी का इल्जाम भले ही सभी एक दूसरे पर लगा रहे हों लेकिन इससे वास्तव में जमीनी छवि खराब हो रही है सत्तारूढ़ भगवा खेमे की। यानि अव्वल तो उसे किसी काम का श्रेय नहीं दिया जा रहा है, उल्टे उसकी योजनाओं में अड़ंगा डालने की पहल की जा रही है और साथ ही उसे ही दगाबाज भी बताया जा रहा है। हालांकि पहले तो विपक्ष के साथ समझौता करने का प्रयास भी किया गया ताकि कुछ काम आगे बढ़े। मसलन भूमि अधिग्रहण के मसले पर कदम वापस खींचने के पीछे सरकार को उम्मीद थी कि इससे जीएसटी को सदन से पारित कराने की राह आसान हो जाएगी। मगर हुआ इसका उल्टा। भूमि विधेयक पर सरकार के पीछे हटने से उत्साहित कांग्रेस ने अब जीएसटी में भी विरोध का फच्चर फंसा दिया है। नतीजन जीएसटी पारित कराने के लिये ‘होल्ड’ पर रखे गये संसद के मानसून सत्र का आखिरकार सत्रावसान करना ही बेहतर समझा गया। लेकिन इस नाकामी की टीस का ही नतीजा है कि अब प्रधानमंत्री ने हवाबाजी व दगाबाजी के जवाब में हवालेबाजी का जुमला उछाल दिया है। मोदी की मानें तो कालाधन के मामले में सरकार द्वारा बरती जा रही सख्ती के कारण हवालेबाजों में हड़कंप मचा हुआ है जिसके चलते वे हर मामले में सरकार की नीतियों का विरोध करने पर उतारू हो गये हैं। यानि मोदी का इशारा साफ है कि कालेधन के लपेटे में कांग्रेस भी आनेवाली है। लेकिन तथ्य यह भी है कि विदेशों में कालेधन का खाता रखनेवालों की सूची में कांग्रेस के शीर्ष परिवार का नाम शामिल बताकर लालकृष्ण आडवाणी बुरे फंस चुके हैं। बाद में उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी थी और सूची में फेरबदल करके गांधी परिवार का नाम भी हटाना पड़ा था। हालांकि एक सच यह भी है कि उन दिनों भाजपा विपक्ष में थी। खैर अब ये उनका काम है कि अपनी कही बात को वे कैसे सत्यापित करेंगे या फिर इसे भी सियासी जुमलेबाजी बताकर कैसे अपनी बात से पीछे हटेंगे। लेकिन इन तमाम मामलों को समग्रता में देखा जाये तो यही समझ में आता है कि पहले हवाबाजी और दगाबाजी के बाद अब हवालेबाजी की इस लफ्फाजी के द्वारा हर कोई अपनी कमियों, खामियों व नाकामियों को ही छिपाने की कोशिश कर रहा है। इसमें जो जितना कामयाब हो जाये उसकी उतनी जय-जय। वर्ना जुमलेबाजी की पोल खुलने के बाद साख का संदिग्ध होना स्वाभाविक ही है। जैसी नजर वैसा नजरिया।
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