मंगलवार, 14 जून 2016

‘दर्दे दिल का दिमाग से इलाज’

‘दर्दे दिल का दिमाग से इलाज’ 

अकेली धरती ही गोल नहीं है। गोल तो राजनीति भी है। जिस तरह सूरज किसी भी तरफ से धरती पर प्रकाश क्यों ना डाले, उसके पीछे के हिस्से में अंधेरा ही रहता है। ठीक उसी प्रकार सियासत पर भी जिधर से निगाह डाली जाये उसके दूसरी तरफ की कहानी को समझना नामुमकिन ही रहता है। एक ही निगाह और नजरिये से राजनीति को हर्गिज नहीं समझा जा सकता। विभिन्न बिखरी हुई फुटकर घटनाओं को जोड़ना पड़ता है, तमाम पहलू टटोलने पड़ते हैं। कारण व परिणामों का समीकरण समझना पड़ता है। तब कहीं जाकर सियासत की असली रामकहानी समझ में आती है। इसमें भी तमाम जद्दोजहद, मगजमारी व पातालतोड़ मेहनत के बाद भी अंदर की बात का पक्के तौर पर पता चल पाने की कोई गारंटी भी नहीं होने के कारण फुटकर तौर पर तो तमाम सियासी घटनाएं सामने आती रहती हैं लेकिन उसके अंदर की असली वजह आम तौर पर सामने नहीं आ पाती है। मिसाल के तौर पर बिहार के मोकामा में प्रशासन द्वारा करायी गयी थोक के भाव में नीलगायों की हत्या के जिस मामले को लेकर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व केन्द्रीय महिला एवं बाल विकासमंत्री मेनका गांधी के बीच बुरी तरह ठनी हुई है उस मामले पर चटखारे तो सभी ले रहे हैं लेकिन उसकी तह तक जाने और इसके कारणों को तलाशने की ना तो कोशिश हो रही है और ना ही उसे जानने के प्रति खास दिलचस्पी का माहौल दिख रहा है। अलबत्ता सतही तौर पर पूरा मामला ऐसा दिख रहा है जैसे नीलगाय की हत्या किये जाने को लेकर मेनका बुरी तरह द्रवित हैं जबकि जावड़ेकर को इस जीव हत्या का कोई अफसोस नहीं है। यानि पूरा मामला महज नीलगाय पर ही आकर सिमट गया है। इसी वजह से बहस भी जीवहत्या को सरकारी इजाजत मिलने तक ही सीमित दिख रही है। जबकि हकीकत यह है कि यह पूरा मामला ‘राम जनम के हेतु अनेका, परम विचित्र एक तें एका’ सरीखा है जिसकी कई परतें हैं और कई हकीकतें हैं। अभी कुछ ही दिन पहले संसद भवन को राष्ट्रपति भवन से सीधे जोड़नेवाले देश के सबसे चाक-चैबंद चैराहे पर एक नीलगाय तफरीह करती हुई दिखी। उसने चैराहे के चारों तरफ जमकर चैकड़ी भरी और तमाम मीडिया के कैमरों ने उस घटना को बड़ी खबर के तौर पर प्रकाशित व प्रसारित किया। हालांकि बाद में वन विभाग ने उसे अपने कब्जे में लेकर जंगल की राह अवश्य दिखा दी लेकिन यह आज तक पता नहीं चल पाया है कि वह नीलगाय कब, कैसे व कहां से आयी थी। लेकिन इस घटना ने समूचे देश को यह अच्छे से बता दिया कि नीलगाय कोई गाय नहीं है। दूसरे शब्दों में कहें तो नीलगाय के वहां आने अथवा भेजे जाने का अगर यही मकसद था कि सबको यह अच्छे से बता दिया जाये कि नीलगाय वास्तव में कोई गाय नहीं होती है जिसे माता का दर्ज देकर सियासत में पूजनीय बनाया जाये तो जाहिर तौर पर यह मकसद तो पूरा हो ही गया। उसके कुछ दिनों बाद खबर आती है कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति से बिहार के स्थानीय प्रशासन ने थोक के भाव में नीलगायों का शिकार करवाया है। यह खबर सामान्य तौर पर सामने आती तो यही माना जाता कि किसानों को राहत पहुंचाने के लिये प्रशासन ने ऐसा किया है। ना खास चर्चा होती ना बहस। लेकिन मसले को तूल दे दिया मेनका ने, यह कहकर कि जावड़ेकर ने सूबे की सरकार पर दबाव बनाकर ऐसा कराया है। साथ ही ऐसा ही दबाव वे अलग-अलग सूबों में बंदर, हाथी व मोर को मरवाने के लिये भी बनाये हुए हैं। यानि मेनका ने तस्वीर को ऐसी शक्ल देने की कोशिश की मानों जावड़ेकर का काम केवल जानवरों को मरवाने तक ही सीमित है। चुंकि मामला मोदी सरकार के दो मंत्रियों के बीच टकराव का था लिहाजा खबर बड़ी बन गयी। इसमें किसी ने भी यह टटोलने की जहमत नहीं उठायी कि कुछ सूबों में इन जानवरों की भारी वंशवृद्धि के कारण वहां के स्थानीय लोगों व खासकर किसानों का जिस तरह से जीना मुहाल हो गया है उसका समाधान करने के लिये अगर इनकी संख्या को कुछ हद तक सीमित करने की कोशिश भी की जाती है तो इसे गुनाह कैसे माना जा सकता है। लेकिन मेनका हत्थे से उखड़ी हुई थी लिहाजा तस्वीर का जो पहलू वे दिखा रही थी वही लोग देख रहे थे। उसके आगे या पीछे की हकीकत जानने व समझने की ठोस कोशिश ही नहीं हुई। लेकिन भाजपा की अगुवाईवाली सरकार के फैसले के खिलाफ जब मेनका आग उगल रही थी तभी पता चला कि उनके सांसद पुत्र वरूण गांधी को पार्टी ने यूपी में चादर से बाहर पैर फैलाने से सख्ती के साथ मना किया है और खुद को पूरे सूबे के जननेता के तौर पर प्रचारित करने से परहेज बरतने का निर्देश दिया है। अब वरूण के प्रति पार्टी की इस सख्ती के बाद नीलगाय के मसले पर मेनका के तल्ख तेवरों की जो कहानी सामने आयी है उसे समग्रता में देखें तो पूरे मामले के कारण व परिणाम को आसानी से समझा जा सकता है। खैर, सियासत में दिल के दर्द का दिमाग से इलाज करने की कोशिशें तो चलती ही रहती हैं। लेकिन सवाल है कि जब तक मर्ज का पूरा मवाद बाहर नहीं आएगा तब तक फोड़े तो अलग-अलग जगह निकलते ही रहेंगे। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’   @ नवकांत ठाकुर # Navkant Thakur 

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