बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

दिल्ली में हुई सामर्थ्य पर सरोकार की जीत

दिल्ली विधानसभा का चुनाव कई मायनों में बेहद खास भी रहा और भविष्य में इसे नजीर के तौर पर भी देखा जाएगा। सतही तौर पर तो यह पूरी तरह एकतरफा चुनाव रहा जिसमें आम आदमी पार्टी को लगातार तीसरी बार सरकार गठन का जनादेश मिला है। लेकिन गहराई से परखें तो अरविंद केजरीवाल को हासिल हुई जीत की हैट्रिक के पीछे जिन कारणों ने निर्णायक भूमिका निभाई और जिन वजहों ने भाजपा को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया उस पर गहराई से विचार करने के बाद इस बार के चुनाव को किसी भी मायने में कतई आसान नहीं कहा जा सकता है। 

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि दिल्ली की चुनावी लड़ाई बेहद जोरदार रही। भीषण संघर्ष हुआ। तमाम मर्यादाएं और परंपराएं तार-तार हो गईं। मतदान के बाद भी टकराव का सिलसिला जारी रहा और मतगणना का नतीजा सामने आने तक अनिश्चितता का माहौल बना रहा। लेकिन जब नतीजा आया तो वह निश्चित तौर पर सबके लिये चैंकानेवाला रहा। ना तो केजरीवाल के सहयोगियों व समर्थकों ने इतनी बड़ी जीत की कल्पना की थी और ना ही भाजपा के रणनीतिकारों को इतनी करारी शिकस्त मिलने का सपने में भी अंदेशा हुआ था। यहां तक कि चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने और सत्ता की चाबी पर कब्जा जमाने के इरादे से मैदान में उतरी कांग्रेस के धुर विरोधियों ने भी शायद ही कभी कल्पना की होगी कि सूबे के नब्बे फीसदी से अधिक सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो जाएगी और लगातार दूसरी बार उसे सीटों के लिहाज से शून्य पर सिमटने के लिये मजबूर होना पड़ेगा। 

लेकिन हुआ तो ऐसा ही है जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। वह भी तब जबकि मतदान के बाद सामने आए एग्जिट पोल के नतीजों में भी भाजपा को कम से कम दहाई के अंक में सीटें मिलने का ही दावा किया जा रहा था। साथ ही केजरीवाल के पैरोकार भी चुनावी नतीजों की अनिश्चितता से इस कदर डरे हुए थे कि ईवीएम में हेरा-फेरी की शिकायत दर्ज कराने से लेकर चुनाव आयोग की कार्यशैली पर भी सार्वजनिक तौर पर उंगली उठाने से नहीं हिचक रहे थे। लिहाजा उम्मीद यही थी कि जिस दम-खम के साथ भाजपा ने चुनाव लड़ा और जिस तरह से चुनावी विमर्श पूरी तरह दो खेमों में विभाजित होता हुआ दिखाई पड़ा उसका परिणाम चुनावी नतीजों में भी दिखाई पड़ेगा और जीत-हार भले ही किसी की भी हो लेकिन दोनों ही पार्टियां सम्मानजनक संख्या में सीटें अवश्य हासिल करेंगी। 

लेकिन इस पूरे गुणा-भाग और अटकलों, समीकरणों व कयासों से अलग हटकर जो नतीजा सामने आया है वह अपने आप में एक अलग ही कहानी बयान कर रहा है। हालांकि केजरीवाल के समर्थकों का दावा है कि जनता जनार्दन ने भाजपा द्वारा चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने के प्रयासों को खारिज किया है जबकि भाजपा के भक्तों की मानें तो दिल्ली के मतदाताओं ने बिजली बिल हाफ और पानी का बिल माफ करने के कारण केजरीवाल को दोबारा सत्ता में बिठाया है। इसके अलावा भी कई तरह के दावे किये जा रहे हैं और इन चुनावी नतीजों की वजहों को समझने के लिये तमाम नजरिये पेश किये जा रहे हैं। लेकिन सच पूछा जाये तो भाजपा के खिलाफ आप की जीत को सामर्थ्य पर सरोकार की जीत के नजरिये से ही देखा जाना चाहिये। 

विश्व की सबसे बड़ी और भारत की सबसे ताकतवर पार्टी भाजपा के पास हर तरह का सामर्थ्य था मतदाताओं को रिझाने, मनाने और बहलाने-फुसलाने का जबकि आप की सरकार अपने जन-सरोकार के सहारे ही मैदान में थी। भाजपा ने अपने पूरे सामर्थ्य का भरपूर प्रयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसके तहत उसने देश भर के अपने तमाम सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और केन्द्र व प्रदेशों के पदाधिकारियों को मैदान में उतार दिया। दिल्ली सरीखे महज सत्तर सीटों की विधानसभावाले अपूर्ण राज्य में ‘चप्पा-चप्पा भाजपामय’ करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। 

लेकिन चुंकि अंतिम फैसला जनता जनार्दन को ही करना था और जनता ने सामर्थ्य से प्रभावित होने के बजाय सरोकार वाली सरकार चुनना ही बेहतर समझा। ऐसी सरकार जिसने राजस्व का अधिकतम हिस्सा आम लोगों को सीधा लाभ देने में खर्च किया हो। स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में कायाकल्प की राह पकड़ी हो। आम लोगों पर कर व बिलों का न्यूतमम बोझ डालते हुए उन्हें सरकारी संसाधनों का अधिकतम लाभ दिया हो। जिसके शासन की जन-सरोकारवादी प्राथमिकताएं सर्वविदित हों और नेतृत्व भी इमानदार, एकजुट, मजबूत और निष्पक्ष हो। दूसरी ओर भाजपा थी जिसकी ना तो दिल्ली को लेकर कोई स्पष्ट नीति थी, ना कोई मुख्यमंत्री पद का चेहरा था और ना ही जमीनी कार्यकर्ताओं की चुनाव में पूछ थी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इसी जुगत में जुटा रहा कि येन-केन-प्रकारेण बहुसंख्यक मतदाताओं की राष्ट्रवादी संवेदना को कुरेद कर अधिकतम वोट बटोरा जाये। इसके लिये जहरीले व विभाजनकारी बयानों की बरसात भी हुई और बहुसंख्यकों को काल्पनिक चुनौतियों से डराने का प्रयास भी हुआ। 

लेकिन सामर्थ्य और सरोकार के बीच हुए इस सीधे टकराव में जन-सरोकारों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की राह पर चल रही केजरीवाल सरकार के मुकाबले सुनहरे भविष्य का सपना दिखाकर ज्वलंत समस्याओं की अनदेखी करनेवाली भाजपा को खारिज करके दिल्ली के जनता-जनार्दन ने केन्द्रीय से लेकर तमाम सूबाई शासन, प्रशासन और सियासी दलों को स्पष्ट लहजे में यह समझा दिया है कि- ‘भूखे भजन न होई गोपाला, पकड़ो अपनी कंठी माला।’ ‘‘जैसी नजर, वैसा नजरिया।’’  @ नवकांत ठाकुर #Navkant_Thakur

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