गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

‘सवाल सारे गलत हैं, जवाब झूठे हैं’

मौजूदा दौर के जमीनी हालातों पर नजर डालें तो हर तरफ कमजोरियों का ही आलम है। खास तौर से अर्थव्यवस्था की कमजोरी तो जगजाहिर ही है। खेती-मजदूरी कमजोर, आयात-निर्यात कमजोर, उत्पादन-उपभोग कमजोर, मांग-आपूर्ति कमजोर, क्रेता-विक्रेता कमजोर। हर तरफ सिर्फ कमजोरी ही कमजोरी। उस पर तुर्रा यह कि कमजोरी दूर करने के लिये बनाए जा रहे नीतियों-नियमों के शिलाजीत, शतावरी, क्रौंच बीज, मूसली और अश्वगंधा सरीखे तमाम जड़ी-बूटियों का तगड़ा डोज भी मर्ज पर उल्टा ही असर कर रहा है। ज्यों-ज्यों दवा की खुराक बढ़ाई जा रही है त्यों-त्यों मरीज मरणासन्न होता जा रहा है। 

हालांकि इस कमजोरी की चपेट में तो फिलहाल समूचा संसार ही है। लिहाजा थोड़ी देर के लिये उस कमजोरी की तत्काल अनदेखी भी की जा सकती है। लेकिन देश में उससे भी कमजोर स्थिति में है विश्वास, यकीन, भरोसा, ट्रस्ट। यह ना तो विपक्ष को सरकार पर है, ना सरकार को विरोधियों पर और ना ही आवाम को निजाम पर। हर तरफ माहौल है तनातनी का, टकराव का और भारी अविश्वास का। सबकी अपनी ढ़फली है और अपना राग है। किसी की जुबान पर चैता है तो किसी के कंठ से फूट रहा फाग है। हर तरफ आग ही आग है। धुआँ-धुआँ है और हुआँ-हुआँ है। इस धुआँ-धुआँ सी धुंध और हुआँ-हुआँ के शोर में ना तो सही तस्वीर दिखाई पड़ रही है और ना ही सच्ची बात सुनाई पड़ रही है। 

मसला जन्म ले चुके संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) का हो, प्रसूति की प्रक्रिया से गुजर रहे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का अथवा गर्भाधान के प्रयासों की संदिग्धता से जूझ रहे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी (एनआरसी) का। तमाम मसलों को लेकर असमंजस, उहापोह और बेचैनी का माहौल है। इसी बीच किसी ने अफवाह उड़ा दी कि कौआ कान ले गया तो लोग अपना कान टटोलने के बजाय कौए को पकड़ने के लिये दौड़ पड़े। कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक के कुछ लोग कौए को पकड़ने के लिये दौड़ पड़े ताकि कान वापस पा सकें और कुछ लोग उनके पीछे इस प्रयास में दौड़े कि उन्हें कान कटने के अफवाहों की हकीकत से अवगत करा सकें। बाकी बचे लोग जो ना आगे दौड़े और ना पीछे, वे इस अफरातफरी, मारामारी और हिंसा-प्रतिहिंसा को देखकर हतप्रभ ठगे से रह गए। ना उन्हें कान का होश रहा ना कौए का। हालांकि बाद में सरकार के समझाने पर कान टाटोलने के बाद लोग कुछ हद तक आश्वस्त अवश्य हुए हैं लेकिन विपक्षी ताकतें उन्हें अब यह समझा रही हैं कि भले ही फिलहाल कान सुरक्षित हो लेकिन कौआ कुछ ऐसा लेकर अवश्य उड़ा है जिसके बिना कान के होने या ना होने का कोई मतलब ही नहीं है। 

एनआरसी और एनपीआर के मामले में फंसे पेंच को देखते हुए लोगों को भी अंदरखाने यह डर सता रहा है कि कुछ तो गड़बड़ अवश्य है। वर्ना पिछली बार जो एनपीआर तैयार किया गया उसमें सिर्फ 15 सवाल ही पूछे गए थे लेकिन इस बार 21 सवालों की सूची का जवाब मांगा जानेवाला है। सवाल भी ऐसे जिनका जवाब हासिल करने के बाद सरकार को अलग से एनआरसी कराने की शायद ही जरूरत महसूस हो। मसलन इस बार सबको अपने माता-पिता का सिर्फ नाम ही नहीं बताना होगा बल्कि उनके जन्म स्थान और जन्म की तारीख का भी खुलासा करना पड़ेगा। हालांकि फिलहाल उसका कागजी प्रमाण भले ही ना मांगा जा रहा हो लेकिन आगे चलकर दी गई जानकारी यदि गलत पायी गयी तो सरकार को झांसा देने का अंजाम क्या हो सकता है यह जानने के लिये शायद ही किसी को वकालत की ऊँची डिग्री की आवश्यकता हो। लेकिन एक तरफ ऐसी हकीकतें हैं तो दूसरी तरफ उसके बारे में विस्तार से बतानेवालों की अलग-अलग जुबान, लहजे और भाषाएं भी हैं जिनका आपस में कोई तालमेल ही नहीं है। विरोधी कह रहे हैं कि भारी जनविरोध से सचेत होकर सरकार अब एनआरसी को एनपीआर की शक्ल में ला रही है ताकि लोगों को धोखे में रखा जा सके जबकि सरकार की ओर से सफाई आई है कि अव्वल तो एनपीआर में पूछे जानेवाले सवालों को अंतिम रूप नहीं दिया गया है और दूसरे परंपरागत एनपीआर प्रक्रिया का एनआरसी से कोई लेना देना ही नहीं है। 

अब सवाल है कि किसको सही समझें और किसको गलत? जनसंख्या के आंकड़े जुटानेवालों को तो कथित तौर पर 21 सवालों की फेहरिश्त के मुताबिक प्रशिक्षण दिया गया है। लिहाजा उसी आधार पर एक बार फिर कौए की चोंच में कान की आशंका महसूस हो रही है। लेकिन सरकार उस फेहरिश्त को ही फिलहाल खारिज कर रही है ताकि लोगों को कान की यथास्थिति यथावत महसूस हो। इसमें यह समझना मुश्किल है कि कौन सच्चा है और कौन झूठा। सवाल उठा डिटेंशन सेंटर का, तो प्रधानमंत्री ने उसके अस्तित्व को ही नकार दिया। लेकिन उसकी मौजूदगी दिखा कर दोबारा पूछने पर कहा गया कि इसे हमने नहीं बनाया, सवाल पूछनेवाले ही बना चुके हैं। सवाल उठा एनआरसी का तो इस पर प्रधानमंत्री का सुर अलग है, गृहमंत्री का साज अलग है और विपक्ष की आवाज अलग। ऐसे तमाम सवालों और जवाबों के बीच कहीं कोई तालमेल या एक-सूत्रता ही नहीं है। शायद इन्हीं हालातों के मद्देनजर तहसीन मुनव्वर ने लिखा है कि- ‘सितारे सारे सभी माहताब झूठे हैं, जमीं के जितने भी हैं आफताब झूठे हैं, जो शाम होते ही घर-घर में पूछे जाते हैं, सवाल सारे गलत हैं जवाब झूठे हैं।’ 'जैसी नजर वैसा नजरिया।' #Navkant_Thakur

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