सोमवार, 20 मार्च 2017

महज संयोग नहीं है यूपी में योगी का योग

महज संयोग नहीं है यूपी में योगी का योग


अंतिम समय तक मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर दिखाई दे रहे अजय सिंह नेगी अर्थात योगी आदित्यनाथ का नाम निर्णायक मौके पर धूमकेतु की तरह चमकना और सूबे की सियासत उनकी मुट्ठी में आ जाना महज सामान्य संयोग नहीं है। तमाम बड़े चेहरों व नामों को दरकिनार करते हुए अगर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने योगी पर अपना भरोसा दिखाया है तो इसकी सबसे बड़ी वजह है अपने वायदों को पूरा करने के प्रति मतदाताओं को आश्वस्त करना और विरोधियों की भावी रणनीतियों का पहल से ही जवाब तैयार कर लना। मुख्य रूप से 25 महीने बाद होनेवाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने योगी को यूपी के मोर्चे पर तैनात करके ऐसा जाल बिछा दिया जिसमें उलझने से बचने में विरोधियों को दांतों तले पसीना आ जाए। साथ ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की जिस नीति के तहत ना सिर्फ सपा-कांग्रेस की जोड़ी ने बल्कि बसपा ने भी भाजपा के समक्ष हालिया चुनाव में चुनौती पेश की थी उसके खिलाफ बढ़-चढ़कर मतदान करते हुए अगर सूबे की जनता ने भाजपा को दो-तिहाई से भी अधिक सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ कुर्सी पर बिठाने का फैसला किया तो इसका सीधा मतलब यही है कि जनता को भाजपा से योगी सरीखे मुख्यमंत्री की ही अपेक्षा थी। योगी की व्यक्तिगत छवि ठीक वैसी ही है जैसा वायदा करके भाजपा ने यूपी के मतदाताओं को भरोसे में लिया है। मसलन अवैध बूचड़खानों को रातोंरात बंद करने का जो वायदा भाजपा ने किया है उसके पूरा होने का भरोसा देना योगी की छवि के बूते की ही बात है क्योंकि उनकी सुबह ही गायों को अपने हाथों से चारा खिलाने के साथ होती है। इसी प्रकार अवैध कब्जे वाली जमीनों को दबंगों से छीनकर उसे उसके असली हकदारों को वापस लौटाने का भाजपा ने जो चुनावी वायदा किया था उसके पूरा होने का भरोसा भी योगी की छवि दिला रही है क्योंकि बकायदा जनता दरबार लगाकर पूर्वांचल के वंचितों, शोषितों व पीड़ितों को जायज हक दिलाने व दबंगों को औकात में रहने के लिए मजबूर करने को लेकर योगी पहले से ही विख्यात हैं। इसी प्रकार सांसद के तौर पर स्थानीय प्रशासन को अपने मनमुताबिक काम करने के लिये मजबूती से मजबूर करनेवाले योगी के बारे में यह धारणा भी बनी हुई है कि नौकरशाहों के मायाजाल में वे कतई नहीं फंस सकते बल्कि नौकरशाही को इनके मनमुताबिक काम करना ही पड़ेगा। स्थापित छवि के मुताबिक योगी पर ना किसी की धौंस चल सकती है और ना ही दबाव काम आ सकता है। इनकी छवि के साथ इमानदारी की चमक भी पहले से जुड़ी हुई है लिहाजा इस पर विश्वास नहीं करने का कोई कारण नहीं है कि उनके कार्यकाल में कोई भी योजना भ्रष्टाचार की भेंट हर्गिज नहीं चढ़ेगी। यानि समग्रता में देखा जाये तो हवा का रूख पहचानने का दावा करनेवालों ने भले ही योगी को मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार मानने से इनकार कर दिया हो लेकिन भाजपा ने चुनाव के दौरान अपना जो संकल्प पत्र प्रस्तुत किया था उसके सबसे करीब अगर सूबे के किसी की भाजपाई नेता की छवि दिखाई देती है तो वे योगी आदित्यनाथ ही हैं। चाहे प्रदेश को वंशवाद, परिवारवाद या तुष्टिकरण के चंगुल से बाहर निकालने की कसौटी पर परखें अथवा बहुसंख्यक मतदाताओं को लुभाने के लिए किये गये सांकेतिक वायदों को आधार बनाकर जांचें। हर नजरिये से योगी ही प्रधानमंत्री मोदी के वायदों को पूरा करने की सबसे मजबूत स्थिति में दिखाई पड़ते हैं। लिहाजा इतना तो स्पष्ट है कि यूपी के साथ योगी का जो योग हुआ है वह पहले से ही सोची समझी रणनीति का हिस्सा है ना कि उस कथित दबाव का नतीजा है जो योगी के समर्थकों ने पार्टी नेतृत्व पर बनाने की कोशिश की थी। इसके अलावा योगी को आगे करने की सबसे बड़ी वजह है भावी राजनीतिक चुनौतियों का मजबूती से सामना करने के लिये अभी से निर्णायक पहल कर लेना। क्योंकि माना यही जा रहा है कि दो साल बाद होनेवाले लोकसभा के चुनाव में तमाम गैर-भाजपाई दलों का एक मंच पर आना तय ही है। ऐसे में स्वाभाविक है कि राजनीति होगी ध्रुवीकरण की और अगर अल्पसंख्यकों को अपने साथ जोड़ने के लिए बाकी दल परस्पर गठबंधन करेंगे तो स्वाभाविक तौर पर बहुसंख्यकवाद की राजनीति को धार देने के अलावा भाजपा के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचेगा। इस लिहाज से भी देखें तो भाजपा के लिये योगी से अधिक मुफीद चेहरा दूसरा कोई नहीं हो सकता है जिसकी स्वीकार्यता गोरखपुर से लेकर गाजियाबाद तक हो। हालांकि विधायक दल का नेता चुने जाने के फौरन बाद अपने पहले संबोधन में योगी ने साफ कर दिया है वे ‘सबका साथ सबका विकास’ की नीति पर चलते हुए प्रदेश को विकास की राह पर आगे ले जाने के लिये पूरी तरह कृतसंकल्प हैं और अपनी कट्टर हिन्दूवादी छवि को उन्होंने फिलहाल पीछे धकेल देना ही बेहतर समझा है। इसकी वजह भी बिल्कुल साफ है कि चुंकि इस दफा अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के काफी बड़े वर्ग ने तीन तलाक के मसले पर भाजपा की नीति से प्रभावित होकर उसे अपना समर्थन दिया है लिहाजा वह अपनी तरफ से कट्टर हिन्दुत्ववादी राह अपनाने की पहल हर्गिज नहीं करेगी। लेकिन ‘अतिशय रगड़ करे जो कोई, अनल प्रगट चंदन से होई’ की नौबत से निपटने में योगी का मुकाबला प्रदेश भाजपा का कोई दूसरा नेता कतई नहीं कर सकता। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’   @ नवकांत ठाकुर # Navkant Thakur

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