सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

‘बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी’

‘बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी’


वाकई दशकों से अनसुना ही तो किया जा रहा था पड़ोसी की उस बात को जो वह हमें सुनाता आ रहा था। उसने अपनी बात सुनाने के लिये क्या-क्या नहीं किया। कभी गालियां दी, कभी हिंसक हुआ। कभी गुदगुदाया भी, कभी तमतमाया भी। सिर्फ इसलिये ताकि उसकी बात सुनी जाये। लेकिन वह बात जिसका कोई मायने-मतलब ही नहीं है। आखिर ऐसी बातों को अनसुना ना करते तो और क्या करते। लेकिन वह नहीं माना। उसकी गुस्ताखियां लगातार बढ़ती गयीं। इस तरफ की खामोशी को उसने कमजोरी समझ ली। उसका हौसला लगातार बुलंद होता गया। लेकिन बर्दाश्त की भी एक हद होती है। और जब वह हद आ गयी, तो हो गया वह, जिसकी हमारे पड़ोसी ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। उसे ऐसी जगह पर ऐसा जख्म दे दिया गया जिसे ना तो वह सह सकता है और ना ही किसी से कह सकता है। कहे भी तो क्या कहे, किससे कहे। तभी तो जख्मों से छलनी होने के बावजूद वह मानने के लिये तैयार ही नहीं है कि उसके किस हिस्से पर कैसा वार हुआ है। कुछ समय के लिये अगर मान भी लिया जाये कि उसके खिलाफ कोई वार नहीं किया गया है तो आखिर यह छटपटाहट और बिलबिलाहट क्यों है? क्यों भारत के तमाम टीवी चैनलों को प्रतिबंधित किया गया है? नवाज शरीफ ने आखिर किस बात की निंदा की है? क्यों लश्कर का मुखिया बिलबिलाहट में जहर उगलता और बदला लिये जाने की धमकी देता घूम रहा है? जब कुछ हुआ ही नहीं है तो किसका बदला, कैसा बदला? यानि वह हुआ तो जरूर है जिसे स्वीकार करने का साहस हमारे पड़ोसी मुल्क में है ही नहीं। आखिर वह दुनियां के सामने यह स्वीकार भी कैसे कर सकता है कि उसके कब्जेवाली जमीन पर आतंकी गतिविधियां संचालित हो रही थीं जिसे भारत ने विध्वंसक कार्रवाई करते ध्वस्त कर दिया है। साथ ही वह अपनी आवाम के सामने यह भी कबूल नहीं कर सकता कि उसके कब्जेवाली जमीन पर चहलकदमी करते हुए पड़ोसी मुल्क की फौज ने बड़े आराम और इत्मिनान के साथ सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दे दिया और उसकी तमाम रक्षा व्यवस्था को इसकी भनक भी नहीं लग सकी। परमाणु और मिसाइलों की तमाम धौंस का बेअसर रहना भी वह स्वीकार नहीं कर सकता। लेकिन वह स्वीकार करे या ना करे, इतना तो तय है कि पलटवार करने का प्रयास जरूर करेगा। तैयारियां इधर भी पूरी हैं। बस इंतजार है कि वह कुछ करे तो सही। जवाब ऐसा मिलेगा कि सिर्फ इतिहास ही नहीं बदलेगा, पूरा भूगोल बदल जाएगा। वैसे भी पहले पठानकोट और उसके बाद उड़ी में कराए गये आतंकी हमले का करारा जवाब देने के क्रम में अंजाम दिये सर्जिकल स्ट्राइक से ही भारत के सीने में सुलग रही बदले की आग कतई शांत नहीं पड़ सकती है। अभी तो सिर्फ ताजा घाव पर मरहम लगा है, नासूर बन चुके पुराने जख्मों का हिसाब-किताब तो बाकी ही है। यह तो आतंक के खिलाफ सीधी कार्रवाई की महज एक शुरूआत भर है। पाक की ओर से थोपे गये छद्म युद्ध के खिलाफ इसे भारत के पहले औपचारिक प्रतिवाद के तौर पर देखा जाना ही उचित होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो आतंक के खिलाफ लंबे समय से जारी लड़ाई का यह छोटा सा पड़ाव मात्र है। सच तो यह है कि बेशक अपनी ओर से आर-पार का युद्ध छेड़ने की पहल करने के विकल्प को आजमाने से परहेज बरतने की नीति बदस्तूर जारी रहनेवाली है लेकिन पाकिस्तान को जंग से भी अधिक जहरीला दर्द देने की राह पर भारत लगातार आगे बढ़ता रहेगा। खैर, सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के अलावा पड़ोसी मुल्क को विश्व बिरादरी में अलग-थलग करने का पड़ाव भी अब पूरी तरह पार होने की कगार पर ही है। अमेरिका द्वारा पाक को औकात में रहने का निर्देश दिया जाना, संयुक्त राष्ट्र द्वारा नवाज शरीफ की तमाम दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया जाना, सार्क देशों द्वारा पाक का पूरी तरह बहिष्कार किया जाना, रूस द्वारा पाक सेना के साथ पूर्वनिर्धारित युद्धाभ्यास स्थगित किया जाना और चीन द्वारा पाक में जारी आतंकी गतिविधियों के खिलाफ मुखर होना यह बताने के लिये काफी है कि विश्व बिरादरी में पाक किस कदर अकेला पड़ता जा रहा है। लेकिन लड़ाई अभी बहुत लंबी है। मौजूदा पड़ावों को ही पर्याप्त मानकर शांत बैठ जाने का मतलब होगा सांप को चोटिल करके छोड़ देना। अभी तो उसे महज कुछ ही जख्म दिये गये हैं। फन कुचलना तो अभी बाकी है। जिस जंग का उसने आगाज किया उसे अंजाम तक तो पहुंचाना ही है। इसके लिये रणनीति भी तैयार है। अब जहां एक ओर आर्थिक नुकसान पहुंचाने के लिये उसे एकतरफा तौर पर दिया गया मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा उससे वापस लिया जाना है वहीं मित्र देशों को इस बात के लिये सहमत करना है कि वे भी उसके साथ अपना आर्थिक रिश्ता पूरी तरह खत्म ना भी करें तो अधिकतम कम अवश्य कर लें। साथ ही सिंधु सरीखी नदियों के पानी से उसे महरूम करने की ठोस योजना पर भी जल्दी ही अमल आरंभ होनेवाला है। जाहिर तौर पर ऐसे तमाम विकल्पों अमल करना तब तक जारी रखा जाना चाहिये जब तक पाक प्रायोजित आतंकवाद का समूल नाश नहीं हो जाता है और गुलाम कश्मीर की सरजमीं पर निर्णायक तौर पर भारतीय तिरंगा लहराने में कामयाबी नहीं मिल जाती है। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’ @ नवकांत ठाकुर # Navkant Thakur

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