‘सलीम ने बचाया अब सलीम को बचाओ’
अनंतनाग में आतंकी हमला करने के लिए सावन महीने के पहले सोमवार को चुनना, अमरनाथ की यात्रा से वापस लौट रहे श्रद्धालुओं की बस को निशाना बनाना और गुजरात नंबर की बस में घुसकर तमाम निर्दोष व निहत्थे यात्रियों को जान से मारने की कोशिश करना यह बताने के लिए काफी है कि आतंकियों का मंसूबा क्या था। बेशक सौ तरह की बातों के बहाने यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि गुजरात नंबर की बस का आतंकियों के हत्थे चढ़ जाना महज एक इत्तेफाक था लेकिन वास्तव में देखा जाए तो यह कोई इत्तेफाक नहीं था। इत्तेफाक सिर्फ टायर पंचर हो जाना था जिसके कारण बस के आगे चल रही रोड ओपनिंग टीम से उसका संपर्क समाप्त हो गया। वर्ना टुकड़ों में सामने आ रही खबरों, जानकारियों व तथ्यों को जोड़ कर देखा जाए तो अनंतनाग की आतंकी वारदात का पूरा घटनाक्रम कोई इत्तेफाक नहीं था बल्कि बकायदा सोची-समझी रणनीति के तहत इस दानवी कुकृत्य को अंजाम दिया गया। मसलन खुफिया सूत्र बताते हैं कि आतंकियों ने घटनास्थल की रेकी भी की थी। उन्हें पता था कि बुरहान वानी की मौत की बरसी के बाद सुरक्षाकर्मी राहत की सांस लेंगे। उन्हें यह भी पता था कि अंधेरा हो जाने के बाद भी जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर रोड ओपनिंग टीम की सुरक्षा में पर्यटकों की गाड़ियां आती-जाती रहती हैं। उन्हें वारदात की धमक दूर तक सुनानी थी। इसके लिए बड़ी गाड़ी को ही उन्हें निशाना बनाना था। वे दो मोटरसाइकिलों पर सवार थे। यानि उन्हें घात लगाकर मुठभेड़ नहीं करनी थी बल्कि बिजली की तरह वारदात को अंजाम देकर धुएं की तरह गायब हो जाना था। मामले की चर्चा अधिक हो इसके लिए जम्मू-कश्मीर से बाहर की गाड़ी को निशाना बनाया गया। साथ ही इसके लिए सोमवार का दिन चुना गया क्योंकि सावन माह के दौरान हिन्दू समाज में सोमवार का खास महत्व है। इस दौरान देश-दुनियां से हिन्दू समाज के लोग अमरनाथ की यात्रा पर आते हैं। उन्हें देश के मौजूदा माहौल का भी पूरा अंदाजा था क्योंकि एक तरफ गौ-हत्या व तीन तलाक सरीखे मामले को लेकर सांप्रदायिक स्तर पर वैचारिक तनातनी का माहौल है तो दूसरी तरफ बंगाल से लेकर केरल तक में सांप्रदायिक टकराव की आग धधक रही है। ऐसे में चेतन भगत सरीखे स्वनामधन्य बुद्धिजीवियों के शब्दों में यह खबर सामने आना देश के सांप्रदायिक माहौल को बुरी तरह बिगाड़ सकता था कि हिन्दू तीर्थयात्रियों की मुस्लिम आतंकियों ने सामूहिक हत्या की है। लेकिन इस पूरे मामले में सबसे सुखद इत्तेफाक रहा बस चालक का मुस्लिम होना। तभी तो आतंकी हमले के बाद दो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। मीडिया हो या सोशल मीडिया, हर जगह सलीम और इस्माइल की बातें हो रही हैं। एक तरफ आतंकी इस्माइल ने भगवान शिव के सात भक्तों की जान ली तो वहीं दूसरी ओर बस ड्राइवर शेख सलीम गफूर ने दिलेरी दिखाते हुए 50 से ज्यादा शिव भक्तों की जान बचा ली। हुआ यूं कि सावन का पहला सोमवार होने के कारण अमरनाथ यात्रा मार्ग पर सामान्य से ज्यादा चहल पहल थी। बाबा बर्फानी के हिमलिंग का दर्शन करने के बाद श्रद्धालुओं की बस लेकर सलीम चल दिया। इत्तेफाक से रास्ते में उसकी बस का टायर पंचर हो गया जिसकी वजह से रोड ओपनिंग टीम आगे निकल गई। बस ठीक होकर अभी चली ही थी कि अचानक आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। लेकिन गुजरात स्थित वलसाड के रहने वाले सलीम ने दिलेरी दिखाते हुए हमले के दौरान यात्रियों से भरी बस को तेजी से भगाना शुरू कर दिया और पुलिस पिकेट के पास जाकर ही उसने बस रोकी। इस तरह सलीम ने आतंकियों के मंसूबे पर पानी फेर दिया, क्योंकि आतंकी अगर बस में चढ़ जाते तो उस बस में सवार एक भी यात्री बच नहीं सकता था। हमले के वक्त बस में करीब 56 लोग सवार थे। सलीम की मानें तो उस वक्त खुदा ने उसे आगे बढ़ते रहने की हिम्मत दी थी इसलिए उसने अंधाधुंध फायरिंग से बचाते हुए बस को तेज गति से भगाया और यात्रियों के प्राणों की रक्षा हो सकी। अब इस मामले को एक अलग पहलू से देखें तो इस पूरी वारदात को अंजाम देनेवाला आतंकी इस्माइल भी सलीम की तरह मुस्लिम ही था लेकिन सलीम ने फरिश्ते का किरदार अदा किया जबकि इस्माइल ने इन्सानियत का गला घोंटा है। बताया जा रहा है कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी इस्माइल ने अपने तीन अन्य साथियों के साथ मिलकर इस वारदात को अंजाम दिया। बेशक सलीम को इस बहादुरी का पारितोषिक तो मिलना ही चाहिए और उसे वीरता पुरस्कार से नवाजा ही जाना चाहिए। उसने सिर्फ यात्रियों की जान ही नहीं बचाई बल्कि समूचे मुस्लिम समाज की आबरू को बचा लिया। उसने देश की गंगा-जमुनी संस्कृति को सवालों में घिरने से बचाया और प्रधानमंत्री मोदी के उस यकीन की रक्षा की जिसके नाते उन्होंने अमेरिका की धरती पर सीना ठोंक कर कहा था कि भारत का कोई भी मुसलमान राष्ट्रद्रोही नहीं हो सकता है। वाकई सलीम सलाम के काबिल है। लेकिन अफसोसनाक बात है कि कुछ शरारती तत्व सलीम पर संदेह जताते हुए सवाल उठा रहे हैं कि, बस पंचर क्यों हुई? दो टायर कैसे पंचर हुए? दोनों पंचर एक साथ सुधारने की क्या जरूरत थी? वगैरह वगैरह। अब इन्हें कैसे समझाया जाए कि अगर सलीम की इस्माइल से मिलीभगत होती तो आज 7 के बजाए 56 लाशें गिर चुकी होतीं। ‘जैसी नजर वैसा नजरिया।’
@नवकांत ठाकुर #navkantthakur
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